Public Program Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai

Public Program Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai 2001-03-25

Location
Talk duration
58'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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25 मार्च 2001

Public Program

Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - VERIFIED

Satya Ki Prapti Hi Sabse Badi Prapti Hai,

Type: Public Program Place: New Delhi,

Date: 2001-03-25

सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है, ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम। दिल्ली में इतने व्यापक रूप में सहजयोग फैला हुआ है कि एक जमाने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो-चार भी सहजयोगी मिलेंगे। यहाँ का वातावरण ऐसा उस वक्त था कि जब लोग सत्ता के पीछे दौड रहे थे और व्यवसायिक लोग पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती थी कि ये लोग अपने आत्मा की ओर कब मुडेंगे। पर देखा गया कि सत्ता के पीछे दौड़ने से वो सारी दौड निष्फल हो जाती है, थोडे दिन टिकती है। ना जाने कितने लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से उतर गये। उसी तरह जो लोग धन प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी हाल वही हो जाता है। क्योंकि कोई सी भी चीज़ जो हमारे वास्तविकता से दूर है उसके तरफ जाने से अन्त में यही सिद्ध होता है कि ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनंद क्षणभर में भंगूर हो जाता है, ख़तम हो जाता है। और इसी वजह से मैं देखती हूँ कि दिल्ली में इस कदर लोगों में जागृति आ गई है। ये जागृति आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाये हुए, प्रेम की बरसात है। इसमें ना जाने हमारा लेना देना कितना है। किन्तु समझने की बात ये है कि अगर आपके अन्दर ये सूझबूझ नहीं होती, तो इस तरह से ये कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता था। इसमें एक चीज़ समझना है कि अनेक सन्तों ने इस देश में मेहनत की है। हर एक के घर-घर में उनके बारे में चर्चा होती है। और उन सन्तों के बारे में बहुत कुछ मालुमात बुजुर्गों को तो है ही पर बच्चों को भी हो जाती है। धीरे-धीरे ये बात जमती है कि आखिर ये लोग ऐसे कौन थे जिन्होंने इतना परमार्थ साध्य किया। पता नहीं कैसे इतने व्यावसायिक लोग जिनका सारा ध्यान रात दिन पैसा कमाने में, सत्ता कमाने में जाता है, वो मुडकर सहजयोग में आ गये। क्योंकि उनकी जो वो खोज थी उसमें आनन्द नहीं था, उसमें सुकून नहीं था, शान्ति नहीं थी। किसी प्रकार का विशेष जीवन नहीं था। जब मनुष्य ये पता लगा लेता है कि उसके अन्दर कोई ऐसी वास्तविक आनन्द की भावना आयी नही है, ना ही उसने कोई उस सुख को पाया, जिसके लिए वो इस संसार में आया है। ना जाने कैसे एक ज्योत से अनेक ज्योत जलती गयी। और आज इसमें मैं देखती हूँ कि हजारों लोग यहाँ पर आज उपस्थित हैं, जिन्होंने अपने अन्दर की अन्तरात्मा को पहचाना है।

सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे अन्दर जो बहुत सी त्रुटियाँ हैं, उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं है। जो कुछ धर्म मात्तंडों ने बता दिया, हमने उन्हीं को सत्य मान लिया। उन्होंने कहा कि आईये आप कुछ अनुष्ठान करिये, या कुछ पूजापाठ करिये और या हर तरह की चीज़ें बनायी गयी। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया कि तुम अगर इस तरह से नमाज़ पढ़ो, और इन मुल्लाओं के कहने पे चलो तो तुम्हें मोक्ष मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हुई नहीं। फिर ये है क्या? ये कर्मकाण्डों में हम फिर क्यों फसे हुए हैं? और ये कर्मकाण्ड हमें बहुत ही गहरे अन्धकार में ले जाते हैं।

हम लोग सोचते हैं कि उस कर्मकाण्ड से हम कुछ पा लेंगे सो किसी ने कुछ पाया नहीं। जन्मजन्मान्तर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किये हैं। उन्होंने क्या पाया? अब पाने का समय भी आ गया। आज इस कलियुग में ये समय आ गया है, ऐसा आया है कि आपको सत्य प्राप्त हो। सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज़ है और सत्य ही प्रेम है, और प्रेम ही सत्य है। इसकी ओर आप जरा विचार करें कि हम सत्य को खोजते हैं तो सोचते हैं कि सन्यास ले लें, हिमालय पे जाएं। अपने बाल मुण्डवा लें और और तरह की चीज़ें करें। जब सत्य का वास अन्दर है तो ये बाह्य की चीज़ों से और उपकरणों से क्या होने वाला है। इससे तो मनुष्य पा नहीं सकता सत्य को। क्योंकि इसके साथ कुछ सत्य लिपटा ही नहीं है। तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अन्दर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसे जागृत करना है। अब कुण्डलिनी की शक्ति आपके अन्दर है या नहीं, ऐसी शंका करना भी व्यर्थ है। हर एक इन्सान के अन्दर त्रिकोणाकार अस्थी में कुण्डलिनी की शक्ति है। और उसे जागृत करना बहुत ही जरुरी है जिससे कि आप उस चीज़ को आप प्राप्त करें जिसे मैं कहती हूँ, ‘सत्य’, ‘वास्तविकता’। सबने कहा है कि, ‘अपने को जानो, अपने को पहचानो।’ लेकिन कैसे? हम तो अपने आपको जानते ही नहीं है। हम जो हैं अपने अन्दर से, ना जाने कितनी त्रुटियों से भरे हुए हैं। लोभ, मोह, मद, मत्सर सब तरह की चीज़़ें हमारे अन्दर हैं। और हम ये समझ नहीं पाते कि ये कहाँ से सब आ रही है, और क्यों हमें इस तरह से ग्रसित किया हुआ है। इस चीज़ को अगर आप ध्यान पूर्वक समझे तो एक बात है कि ये त्रुटियाँ जो हैं ये सब बाह्य की हैं। आत्मा शुद्ध निरन्तर है, उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं आती है। और जब आई है तो ये किसी वजह से आयी होगी। हो सकता है कि आपकी परम्परागत आई होगी। पूर्वजन्म से आयी, माँ-बाप से आयी, समाज से आयी, ना जाने कहाँ-कहाँ से ये सब चीजें आपके अन्दर समाविष्ट हुई। अब इसके पीछे अगर खोजते रहे कि ये कहाँ से आयी, क्या हुआ, इससे अच्छा है कि इसको किसी तरह से नष्ट कर दें। ये हमारे अन्दर जो खराबियाँ हैं यही नष्ट हो जाएं तो फिर क्या हम एक शुद्ध चित्त बन जाते हैं। इसकी व्यवस्था जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसने की हुई है। अब आपके अन्दर इतनी ही स्वतन्त्रता है कि आप अपने को पहचानने के लिए जो सर्व सिद्ध प्रक्रिया है उसे अपनाये और वो प्रक्रिया है कुण्डलिनी जागरण की। मैं ये बात कह रही हूँ कि ऐसा नहीं है।

अनादि काल से अपने भारत वर्ष में कुण्डलिनी और कुण्डलिनी के जागरण की बात की गयी है। हाँ, हालांकि उस वक्त में कुण्डलिनी का जागरण बहुत कम लोगों को प्राप्त हुआ था और बहुत मुश्किलें होती थी। लेकिन इसका भी समय आ जाता है कि ये सामूहिक हो जाए। और आज यही बात है कि उस सामूहिक स्थिति में आपने कुण्डलिनी का जागरण पाया है। अब इस सामूहिक स्थिति में आ कर के जब आप इस कुण्डलिनी के जागरण से प्लावित हुए हैं और जब आपके अन्दर एक विशेष रूप का चैतन्य स्वरूप व्यकतित्व प्रकट हुआ है, उस वक्त आपको ये सोचना चाहिए कि ‘वास्तविक में तो मैं ये हूँ और आज तक ना जाने किस चीज़ के पीछे में भ्रामकता में मैं चल रहा था।’ ये सब होता गया, आपके अन्दर जमता गया, बनता गया। और ये सब आपके सुबुद्धि दुर्बुद्धि और ना जाने किस चीज़ से झुँझता गया। सबसे बड़ी बात है कि हमें अगर अपने को पहचानना है तो सर्वप्रथम हमारा सम्बन्ध उस चारों तरफ फैली हुई चैतन्य सृष्टि से होना चाहिए। चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त होनी चाहिए। और उसके लिए, चैतन्य से एकाकारिता के लिए कुण्डलिनी ही उसका मार्ग है, और कोई मार्ग नहीं। कोई कुछ भी बतायें और कोई मार्ग है ही नहीं। लेकिन लोग आपको भूलावे में डालते हैं और लोग भटकने लगते हैं।

जैसे मैं एक बार एक गुरुजी का प्रवचन सुन रही थी तो उन्होंने तो शुरू में ही गालियाँ देनी शुरू कर दी। तो उन्होंने कहा कि ‘आप लोग विकृत हैं’, माने गाली हो गयी । आप लोग विकृत हैं और आपके जो तरीके हैं उसमें आप भगवान को नहीं खोज रहे हैं। आप प्रवृत्ति मार्गी हैं, आप हर एक चीज़ के तरफ दौड़ते हैं, ये तो बात सही है। आप एक तरफ से, दूसरी तरफ दौडते हैं और दौड़ कर के और आप उसमें खो जाते हैं। इस दौड़ में इस तरह के प्रवृत्ती में हमारी सारी ही शक्ति नष्ट हो जाती है। आज ये चाहिए, तो कल वो चाहिए, तो परसो वो चाहिए। भाग रहे हैं इधर से उधर, उधर से उधर। अब ये जो उन्होंने गाली बक दी कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, उसको लोग मान लेते हैं कि अच्छा हम प्रवृत्ती मार्गी हैं। और वो दूसरे के लिए कहते हैं कि आप निवृत्ती मार्गी हैं नहीं। तो आप क्यों आत्मा को प्राप्त कर रहे हो? अगर आप निवृत्ती मार्गी हैं माने आपकी वृत्ती इधर-उधर नहीं दौडती तो आप आत्मा को प्राप्त कर सकते हैं। अब पहले ही इस तरह की एक कठिन समस्या उपस्थित कर दी कि सर्वसाधारण मनुष्य अपने को सोचेगा कि हाँ भाई, मैं तो हूँ प्रवृत्ति मार्गी। तो वो कहेंगे, कि अच्छा ‘ठीक है कि आप गुरुओं की सेवा करो उनको पैसा दो, ये मेहनत करो। ये कर्मकाण्ड करो, इधर पैसा लगाओ, उधर पैसा लगाओ। और जिस तरह से भी हो सके तुम सब कुछ अपना परमेश्वर को दे दो, उसके बाद सन्यास ले लो। और आपको ये बात समझ में आ जाती है, भाई, ये आसान चीज़ है। पर ये अंधों की बात है। अच्छे भले आँख होते हुए भी कोई अगर कहें भी कि तुम अंधे हो, तो क्या इसे मान लेना चाहिए। कोई कहे कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, तो क्या इसे मान लेना चाहिए? अगर आपके अन्दर निवृत्ती नहीं है, ऐसा उनका कहना है। तो आप ज्ञानमार्ग मतलब सहजयोग में नहीं आ सकते! इस तरह की एक भाषा ये लोग व्यवहार में लाते हैं। और उससे सर्वसाधारण जनता ये कहती है कि भई हमारे लिए तो ये ठीक है कि गुरुओं की सेवा करो। उनको सब दो, उनको सब समर्पण दो। इस तरह की जो हमारे अन्दर एक गलत धारणायें बैठ जाती हैं। और हम उसे मान भी लेते हैं क्योंकि हमारे अन्दर ये विश्वास ही नहीं है कि हम कभी अपने आत्मा को पा सकते हैं? और जिससे हम अपनों को जान सकते हैं। लेकिन विश्वाश रखिये यहाँ आज बहुत से लोग बैठे हैं किजिन्होंने कुण्डलिनी का जागरण और उसकी विशेषताओं से पूर्णतया अपने जीवन को प्रफुल्लित किया हुआ है। और आप लोग सभी इस प्रकार इस चीज़ को पा सकते हैं। आपमें कोई कमी नहीं है, कोई कमी नहीं है। ये शक्ति आप सबके अन्दर है। आपने कुछ भी किया हो, आपने कोई भी गलत काम किया हो, आप परमात्मा के विरोध में भी खड़े हो, चाहे जो भी किया हो, ये कुण्डलिनी तो अपनी जगह बैठी हुई है। और जब कोई उसको जगाने वाला आएगा तो वो जग जाएगी। और ये जो बाह्य की चीज़ें हैं, जिसको प्रवृत्ती कहते हैं, ये जो आपके अन्दर षड्रिपू हैं, ये एकदम झड़ जाएंगे।

जब आप देखते हैं कि कोई बीज आप माँ के उदर में डालते हैं तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। बीज में तो कुछ नहीं दिखाई देता। पर वह जब वो माँ के पेट में जाता है तो वो अपने आप प्रस्फुटित हो जाता है। इतना ही नहीं पर उसके अंग प्रत्यंग में जीवन आ जाता है। उसी प्रकार कुण्डलिनी के जागरण से आप जागृत हो जाते हैं। और आपके अन्दर की जो वृत्तियाँ हैं जो नाशकारी हैं, जो गलत हैं, वो अपने आप झड़ जाती है। ये बड़ा आश्चर्य का विषय है, किन्तु ऐसे बड़े आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि ये घोर कलियुग है, ये घोर कलियुग है और इसके प्रताप से ना जाने कितने लोग झुलस गये। और अब इसी कलियुग में ये कार्य होने वाला है और इसी कलियुग में आप इसे प्राप्त करने वाले हैं। और उस परम तत्व को आप प्राप्त करने वाले हैं, जो आपके अन्दर आत्मा स्वरूप विराजित है। उसके प्रकाश में आप अपने को जानेंगे। आप जानेंगे कि आपके अन्दर से कौन से-कौन से दोष गिर गये। और अब आप शुद्ध चित्त वाले, आत्मास्वरूप हो गये हैं। इसको जब आप जान लेंगे कि आपकी ये स्थिति है और ये ही सच्चाई है तो जितनी झूठी बाते हैं, आप छोड देंगे। उससे क्या फायदा है? किसी भी झूठी बात को साथ लेकर के आप कहाँ जा सकते हैं? पर तब तक झूठ नहीं दिखाई देता जब तक आपकी आत्मा जागृत नहीं है। आत्मा के प्रकाश में ही आप उस झूठ को समझ सकते हैं जो आपको हर तरह से भुलावे में रखता है। और इस भुलावे में हर तरह के लोग घूम रहे हैं। आप दुनिया के तरफ नज़र करें। किसी भी धर्म का नाम लेकर के आज लड़ रहे हैं। अरे भाई, जब धर्म है, जब एक ही परमात्मा है, तो लड़ क्यों रहे हो? पर इस तरह के भुलावे तय्यार हो जाते, दिमाखी जमा-खर्च ऐसा बन जाता है और उसको लोग अपना लेते हैं। उसका कारण यही है कि उनकी समझ में अभी प्रकाश नहीं है।

जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य के शक्ति से हो जाता है, और ये सम्बन्ध बड़ा माना हुआ है। आइनस्टाइन जैसे इतने बड़े साइंटिस्ट ने ये कहा है कि जब आपका सम्बन्ध ‘टॉर्शन एरिया’ जिसे कहते हैं उसको होता है तो अकस्मात ऐसी चीज़े होती हैं जिस तरह से आप शांत चित्त हो जाते हैं। कि उस शांत चित्त में ना जाने कितनी उपलब्धियाँ होती हैं। और कितने तरह के नये-नये आपको प्रयोग मिलते हैं, और नयी- नयी उपलब्धियाँ होती हैं। ये सारी चीजें होते हुए भी जब लोग बार-बार जगकर सो जाते हैं और सोकर फिर जगते हैं, ऐसी भी दशा चलती है। ऐसे लोग नहीं होते कि जो एक बार पार हो गये सो हो गये। उसके बाद उनकी गहनता कितनी है इस पर निर्भर है। अगर आप गहन हैं तो ये चीज़ आपके अन्दर जब जागृत होती है तो उसका बड़ा गहन अनुभव होता है। आप एकदम निर्विचारिता में चले जाते हैं। आज ही में बता रही थी कि मनुष्य विचार क्यों करता है? हर समय हर एक चीज़ पे देखना और उस पे विचार करना। कोई चीज़ है, जैसे ये अब कार्पेट है। ये कहाँ से आयी होगी, कितने की होगी, क्या होगा, दुनिया भर की झंझटे इसके लिए होगी। बजाय इसके कि इतना सुन्दर है, इसका सौंदर्य उसका आनन्द लें, मनुष्य सोचता ही रहता है। और इस तरह के सोच विचार से मनुष्य कभी-कभी पगला भी जाता है। तो किसी भी चीज़ की ओर देख कर के उस पर प्रक्रिया करना, रिअॅक्ट करना, इससे बढ़के और कोई गलती नहीं है। क्योंकि जब आप प्रक्रिया कर रहे हैं या रिअॅक्ट कर रहे हैं किसी चीज़ पर, तो वो आप अपने अहंकार के कारण या आपके अन्दर जो सुप्त चेतना है, जिसे कि कन्डिशनिंग कहते हैं उसके कारण होता है। आप इसलिए नहीं कर रहे हैं कि आप उसे पूरी तरह से देख रहे हैं वो साक्षी स्वरूपत्व आप में नहीं है। उस चीज़ को पूरी तरह से देखते हैं। अगर आप पूरी तरह से उसे देख सकते हैं तो उस उस चीज़ का आनन्द आपके अन्दर पूरी तरह से समा जाएगा। सबसे तो बड़ी बात ये है कि इस दशा में आने की बात तो बहुतों ने कही है, मैं कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है। पर वो बहुत से लोग समझ नहीं पाए होंगे या उस वकत ये भी सोचा होगा कि ये कैसे हो सकता है। हम तो एक मानव हैं, ये कैसे हो सकता है? कुण्डलिनी के जागरण से सब हो सकता है। और जब कुण्डलिनी आप सबके अन्दर वास्तव्य किये हुए है, जब वो स्थित है वहाँ, तो सिर्फ उसके जागरण की बात है। ये आपका धरोहर है, ये आपकी अपनी चीज़ है। जिसे आपने खरीदी नहीं, उसके लिए कोई पैसा नहीं दिया, उसके लिए किसी भी तरह की याचना नहीं की, वो अन्दर है, वो स्थित है। सिर्फ उसकी जागृति होने का विचार होना चाहिए। अब ये कुण्डलिनी शक्ति जो है ये आपकी बड़ी शुद्ध इच्छा है, बड़ी शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा हमारे यहाँ कोई है नहीं। जैसे कि कोई साहब हैं, वो कहेंगे कि मैं चाहता हूँ कि मेरे पास एक मोटर आ जाये। अच्छा भाई तो आ गयी मोटर तो उसका आनन्द ही नहीं उठाया। फिर लगे दूसरा कुछ ढूँढने, फिर वो चीज़ हो गयी, तो लगे तीसरी चीज़ ढूँढने। तो इसका मतलब जो आपकी इच्छाएं शुद्ध नहीं थीं। अगर वो शुद्ध इच्छा होती तो आप तृप्त हो जाते।

ये कुण्डलिनी शक्ति आपकी शुद्ध इच्छा है और ये परमेश्वरी इच्छा है। ये जब आपके अन्दर जागृत हो जाती है, तो आप तृप्त हो जाते हैं। तृप्त हो जाते हैं माने आप ये सोचते हैं कि ये जो मेरा मन ये चाहिए, वो चाहिए वो चाहिए करता था। उसकी जगह अब मैं ऐसी सुन्दर बाग में आ गया हूँ, जहाँ सुगन्ध ही सुगन्ध, आनन्द ही आनन्द, शान्ति ही शान्ति और प्रेम ही प्रेम बसा हुआ है। ये जब स्थिति आपकी आ जाती है तो फिर आप मुड़के नहीं देखते उधर, जो गलत चीज़ है। अधिकतर होते हैं, ऐसे भी लोग तो भी कुछ उठते हैं, फिर गिरते हैं, उठते हैं, फिर गिरते हैं। पर सहजयोग में जिसने एक बार इसे प्राप्त किया वो इतनी महत्वपूर्ण चीज़ है और इतनी सहज में होती है। तो उसके लिए कुछ करना नहीं है, उसके लिए आपको पैसा देना नहीं है। कोई चीज़ नहीं, प्रार्थना नहीं, कुछ नहीं। सिर्फ आपके अन्दर शुद्ध इच्छा होनी चाहिए कि मैं अपने महत्व को प्राप्त करूं। इस शुद्ध इच्छा से ही आप उसे प्राप्त करेंगे।

सिर्फ मन में यही एक इच्छा रखें कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाए। ये इच्छा ही इतनी प्रबल है कि उससे अनेक लोग, अनेक देशों में मैंने देखा कि एकदम से पार हो गये। जैसे एक देश है बेनिन। वहाँ पर पहले वो मुसलमान लोग थे। और वो फ्रेंच लोगों से इतना घबरा गये थे कि उन्होंने मुसलमान धर्म ले लिया। वो मुसलमान धर्म लेने के बाद वो संतुष्ट नहीं थे। उससे भी परेशान, उससे भी झगड़े, ये वो। पर जब उनको सहजयोग मिल गया तो सब छोड़-छाड़के अब मजे में हैं। आपको आश्चर्य होगा कि आज वहाँ भी चौदह हज़ार सहजयोगी हैं, वो सब मुसलमान। ये तो मैं मुसलमान उनको मानती हूँ कि जिनके हाथ में चैतन्य है। जिनके हाथ बोलेंगे, आज कियामा का जमाना है। अगर आपके हाथ बोल सकते हैं तभी आप मुसलमान हैं नहीं तो है नहीं। मुसलमान का मतलब है समर्पण। और जब तक आपके हाथ नहीं बोलते आप क्या समर्पण करेंगे। इस तरह से गलतफहमी में पड़े हुऐ लोग आज ना जाने क्या-क्या चीजें कर रहे हैं। इसके लिए ये नहीं है कि आप अगर किसी वेदशास्त्र पढ़े हुऐ हैं या आप बड़े तीर्थयात्रा करते हैं। और आप दुनियाभर के ब्राह्मणों को, और कहना चाहिए कि आज हमारे पड़ोस में एक बड़े जोरो में मन्त्र बोलने लग गये। ऐसे लोगों को आप प्रोत्साहित करते हैं और उनकी मदद करते हैं। और उनको पैसा देते हैं, इससे कुछ नहीं होने वाला। ये सब बेकार की बाते हैं, बेवकुफी की बाते हैं। समझदारी क्या है? कि आपको क्या मिला, आपने सब दिया, आपको क्या प्राप्त हुआ? आपको क्या मिला? क्या आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिला? आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आप जानेंगे कि आप क्या हैं। और क्या आपकी शक्तियाँ हैं। और क्या कर सकते हैं आप, आप कितने समर्थ हैं। जब तक आपका अर्थ ही नहीं मिलता, आप समर्थ कैसे होंगे? इस समर्थता में आप अनेक कार्य कर सकते हैं। मैं तो इतने आश्चर्य में हूँ कि परदेस में जब मैं रहती हूँ तो ये तो परदेशी, इन्होंने तो कभी कुण्डलिनी का नाम भी नहीं सुना। पर जब से पार हो गये हैं तो ना जाने क्या-क्या चमत्कार कर रहे हैं, दुनियाभर की से चीज़ों में। और जब ये मुझे बताते हैं तो मैं सोचती हूँ कि ये चमत्कार का भण्डारा जो है, ये कैसे एकदम से खुल गया! ये लोग इसे कैसे प्राप्त हुऐ। सब तरह से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आपकी पूर्णतया प्रगति हो जाती है और आप इसे आत्मसात कर लेते हैं। इतनी सुन्दर चीज़ है कि अपने आत्मा को आप जाने। आप ही के अन्दर ये हीरा है। आप ही के अन्दर ये ज्ञान है। आप ही के अन्दर सब कुछ है। सिर्फ उसका मार्ग जो है सिर्फ कुण्डलिनी जागरण है और कोई नहीं ।

ये मैं आपसे इसलिए बताना चाहती हूँ कि बहुत बार लोग मुझे प्रश्न पूछते हैं कि कुण्डलिनी के सिवाय और कोई मार्ग है क्या? तो मैंने कहा और कोई मार्ग नहीं, सच बात तो यही है। उसमें मेरा लेना-देना कोई नहीं है। लेकिन आपको तो जो सच है वही बताना है कि कुण्डलिनी के जागरण के सिवाय आपके पास और कोई मार्ग नहीं है। जिससे आप अपने को भी जाने और दुनिया को भी जाने। सारे दुनिया भर के धन्दे छोडकर के सीधे अपने अन्दर बसी हुई इस महान शक्ति का उद्घाटन करना ही आपका परम कर्तव्य है। आज आप लोगों को यहाँ देखकर के इतनी बड़ी तादाद में मेरा हृदय भर आता है। एक ज़माना था कि मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी, ‘यहाँ तो किसी के खोपड़ी में सहजयोग घुसेगा नहीं।’ वो आज मैं देख रही हूँ कि आप लोगों ने इसे आत्मसात किया है, और अपनाया है। और सब तरह का लाभ ही लाभ है, हर तरह का लाभ इसमें है। और अगर महालक्ष्मी की कृपा हो जाए तो अपना देश भी एक बड़ा सुरम्य और बहुत वैभवशाली देश हो सकता है। इसलिए हमको सबको सामाजिक रूप से इसे फैलाना चाहिए। और इस सामाजिक रूप में हर तरह का पहलू हमें पहचानना चाहिए। जहाँ-जहाँ लोगों को तकलीफ है, मैंने कम से कम ऐसे सोलाह प्रोजेक्टस् बनाये हैं। जिसमें औरतों को मदद करना, बच्चों को मदद करना, बीमारों को मदद करना, बूढ़ों को मदद करना, खेतीहर लोगों को मदद करना आदी अनेक से प्रॉजेक्टस् बनाये हैं, कि जिसमें सहजयोग कार्यशील है। और इस कार्य को करते हुए वो समझते हैं कि ये हमारे अन्दर इतनी शक्ति कैसे है। हम रोगियों को ठीक करते हैं, पागलों को ठीक करते हैं, और सबको व्यसनों से छुड़ाते हैं। ये सब शक्तियाँ हमारे अन्दर कैसे हैं? ये शक्ति आपके अन्दर आने का एकमेव साधन है वो है कुण्डलिनी का जागरण। और उसको जागृत रखना चाहिए। इधर-उधर भटकने वाले लोगों को ये ठीक है कि वो एक जगह जरा रुक जाए और देखें कि आप हैं कौन? आप कितनी महान वस्तु हैं, आपमें कितना सामर्थ्य है और उसे आप किस तरह से इस्तेमाल करना चाहते हैं।

मुझे पूर्ण आशा है कि अगले वक्त मैं जब आऊँ तो इससे भी दुगने लोग यहाँ रहे। इतना ही नहीं वो लोग कार्यान्वित हों। सहजयोग में उसको पा कर के आपको सन्यास लेने की जरूरत नहीं है। हिमालय पर जाने की जरूरत नहीं। यहीं, यहीं समाज में रहकर के सहजयोग को फैलाना है। और इस तरह से विश्व में एक विशेष सहज समाज बनाना है। और इस सहज समाज में वही करना चाहिए कि जो सारे संसार का उद्धार कर सकता है। और जितनी इसकी त्रुटियाँ हैं उनको बिल्कुल पूरी तरह से नष्ट कर सकता है। ये कार्य आप लोग सब कर सकते हैं। और उसके लिए इसलिए मैं आपसे बार-बार यही कहूँगी कि अपनी जागृति करते रहें, मनन करें। मनन से जागृति बनी रहेगी और जो दोष हैं वो धीरे-धीरे बिलकुल निकल जाएंगे। इससे आप एक सुन्दर स्वरूप बहुत ही बढ़िया एक व्यक्ति हो जाएंगे। ऐसे अगर व्यक्ति समाज में हो जाए तो ये दुनिया भर की जो आफतें जो मची हुई हैं, दुनिया में ये मारामारी और किस तरह के घोर अत्याचार हो रहे हैं ये सब रुक जाएंगे। क्योंकि आप एक सुन्दर मानव प्रकृति बन जाएंगे। और इस सब चीज़ों से आप दूर रहकर के भी आप इन पर अपना प्रकाश डाल सकते हैं, और सब ठीक कर सकते हैं।

आज के इस वातावरण में मनुष्य घबरा जा सकता है कि ये हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है? इन सबका ये सोचना चाहिए कि एक दिन ऐसा आता है कि सब चीज सामने आके खड़ी हो जाती है। और इतने दिन से चलने वाली ये चीज़ आज एकदम से उदु्घाटित हो जाए, इसका कारण क्या, कि सब लोगों ने अभी तक आत्मा को वरण नहीं किया है। अगर आत्मा को आप अपना ले तो इस तरह की ना गलतियाँ होगी, ना ऐसी चीज़ें आगे चलेंगी। तो अब ऐसी रुकावट आ गयी है, इन्सान ‘खटाक’ खड़ा हो गया है। और सोचता है ‘ये है क्या?’ ये है यही कि आप भटक गये हैं और कुछ लोग तो खाई में गिर गये हैं भटक कर के। यही चीज़ें हैं, इसको समझने की कोशीश करनी चाहिए।

इतने सालों से अपने देश में जो महापाप चल रहा था वो आज उद्भव हुआ है। सामने आके खड़ा हो गया, छोटे से प्रमाण में, हो गया। इससे जागृत होने की जरुरत है कि कहीं हम भी इस भटकावे में तो चल नहीं रहे हैं, हम भी इस तरह लुड़क तो नहीं रहे हैं कि जहाँ हमें नहीं जाना चाहिए। आपको आश्चर्य होगा कि आजकल हिन्दुस्थान में तो मैं देखती हूँ कि हर एक को ये बीमारी है। जो देखो वो ही पैसा बना रहा है। जो देखो वही चाहता है कि किस तरह से नोच खसोटले। अच्छा परदेस में नहीं है, परदेस में ऐसा नहीं है। यानि मुझे खुद हमेशा घबराहट लगी रहती है कि लोग मेरे पास इसलिए आ रहे हैं कि किस तरह से मुझसे पैसा लें। अब ये पैसा मेरा जो है ये समाज कार्य के लिए है। इसलिए नहीं कि कोई चोर-उचक्के आये और मुझे लूट लें, पर वो कोशिश करते हैं। इसी प्रकार एक तरह की अपने यहाँ एक भावना आ गयी है कि जैसा भी हो पैसा बना लो। पर ये लक्ष्मी नहीं है, ये अलक्ष्मी है। क्योंकि आप, तक जब लक्ष्मी आयेगी तो वो बहुत चंचल है, बहुत चंचल है। और वो ऐसे रास्ते पे ले जाएगी कि आपके अन्दर अलक्ष्मी आजायेगी। और उस अलक्ष्मी में आपको समझ में नहीं आएगा कि क्या करें। इसलिए किसी भी चीज़ की ज्यादती करने से पहले ये सोच लेना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं, कहाँ अग्रसर हो रहे हैं? कौन से जंजाल में फँस रहे हैं। तो इस तरह की जो भावनाएं हमें हैं कि पैसे के मामले में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए और दूसरों का कैसा पैसा निकाल सकते हैं, वो करना चाहिए, ये चलने वाला नहीं है। पैसा आप क्या उठाके अपने साथ ले जाएंगे? ये सारा कुकर्म है वह आप ही के खोपड़ी पे बैठेगा। क्योंकि मानती हूँ मैं कि ये घोर कलियुग है। इसीके साथ एक और चल रहा है जिसको मैं कृतयुग कहती हूँ। जब ये परम चैतन्य कार्यान्वित है, कार्यान्वित है। और ये परम चैतन्य वो कार्य कर रहा है जिससे बार-बार ऐसे लोगों को ठोकरे लगेंगी और वो समझ जाएंगे कि ये हम बहुत ही सामाजिक हित के विरोध में हैं। अगर आपको लोगों का हित पाना है, तो आपके अन्दर शक्ति है उसे आप जागृत करें और उनका हित सोचें। किन्तु हित के मामले में भी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। असल में अपने यहाँ तो शब्द इतने सुन्दर हैं ‘स्वार्थ।’ स्वार्थ का मतलब ‘स्व’ का अर्थ। क्या आपने अपने ‘स्व’ का अर्थ जाना है? ‘स्व’ का अर्थ जान लेना ही स्वार्थ है और बाकी सब बेकार है। अगर ये चीज़़ हम लोग समझ लें कि हमने अपने ‘स्व’ का अर्थ नहीं जाना है तो हम उधर ही अग्रसर होंगे वही हम कार्य करेंगे जिसमें ‘स्व’ को जानने की व्यवस्था हो। इसलिए आजकल की जो कुछ भी कश्मकश चली हुई है, झगड़े बाजी चली है, इसकी परम्परा बहुत पुरानी है। अपने देश में स्थित हो गयी, पता नहीं कैसे? पहले जब अंग्रेज आयें, वो भी ये ही धन्दे करते रहें। उन्होंने हमारे यहाँ से कोहिनूर का हीरा ले गये। उनको जब तक आप कुछ प्रेझेंट नहीं दो तो वो खुश नहीं होते थे। पर वो थोड़े प्रमाण में था अब तो बहुत ही बड़े प्रमाण में हर एक चल पड़ी है। तब से शुरु हुआ, बढ़ते-बढ़ते हमारे राजकारणी लोगों ने शुरु किया और आगे बढ़ गया। अब राजकारणी ही नहीं अब तो हर एक आदमी ऐसा हो रहा है कि जो चाहता है कि किस तरह से ड़ाका ड्राले, किस तो तरह से पैसा लूटे।

इसका एक ही मार्ग है, वो है सहजयोग। इसीसे हमारा समाज व्यवस्थित हो जाएगा। इसीसे हमारे समाज में आपसी प्रेम और आदर बनेगा, ना कि हम केवल पैसे का आदर करें। अब दूसरी बात है सत्ता, सत्ता के पीछे भी लोग पागल हैं। सत्ता चाहिए, काहे के लिए चाहिए सत्ता? किसलिए सत्ता चाहिए? आपकी अपने पे सत्ता नहीं है। आप दुनिया भर की सत्ता लेके करोगे क्या? ‘सत्ता चाहिए!’ हमें ये होना है, हमें वो होना है!’ किस दिन के लिए? कौनसे उससे लाभ है? उससे आपका क्या लाभ होने वाला है? सत्ता करने के लिए भी बहुत बड़े आदर्श पुरुष हो गये। उनकी हिम्मत, उनका बड़प्पन, उनकी सच्चाई, वो तो है नहीं, और सत्ता चाहिए। जैसे कोई आप बन्दर को सत्ता दे दीजिए तो वो क्या करेगा! हमारे मराठी में कहते हैं कि बन्दर के हाथ में जली हुई लकड़ी दे दीजिए तो वो तो सबको कुछ जलाते फिरेगा। वही है आज सत्ता का रूप। कि सब बन्दर जैसे अपनी सत्ता को इस्तेमाल करते हैं, पैसा कमाते हैं। और पैसा कमाते हैं सत्ता के लिए। इस तरह के इन दोनों के द्वंद में चलने से आज अपना देश बहुत ही गिर गया है,सामाजिक रूप से। सहजयोग उसका इलाज है। सहजयोग में आने से आप समझ जाएंगे कि ये महामूर्खता है और इस मूर्खता को सहजयोगी नहीं करते। और जिस दिन सहजयोग बहुत फैल जाएगा उस दिन ये सब चीज़ें अपने आप नष्ट हो जाएगी, ये रह ही नहीं सकता। इसलिए आपको समझना चाहिए कि आज-कल जो हम घबराये हुए हैं कि अपने समाज का क्या होगा? उसको ठीक करने का भी, उसको सही रास्ते पर लाने का भी उत्तरदायित्व आपका है, आप कर सकते हैं। आप जो सहजयोगी हैं, ये कर सकते हैं। और जो नहीं भी हैं उनको सहजयोग में ला सकते हैं। हमें जो अगर अच्छी समाज व्यवस्था चाहिए, अच्छी एक व्यवस्था ऐसी हो कि जिसमें कोई किसी को खसोटे ना, मारे न, और सब लोग आपस में प्रेम भाव से रहे। तो इसका इलाज सिर्फ सहजयोग कर सकता है।

सहजयोग दिखने में सीधा-साधा है और सबके अन्दर शक्ति होने से सब सोचते हैं कि हम तो पार हो जायेंगे। पर इसमें रजना पड़ता है, इसमें रमना पड़ता है। और उसके बाद ही इसकी शक्तियाँ पूरी तरह से जागृत हो जाती हैं। और उससे आप हिन्दुस्थान ही नहीं सारे संसार का उद्धार कर सकते हैं और इस उद्धार की व्यवस्था होगी। अब इसमें कुछ-कुछ लोग ऐसे हैं कि वो शैतानी के पीछे हैं। उनकी इच्छायें शैतानी हैं। ठीक है, ऐसे लोग रह जाएंगे। मैंने आपको बहुत बार आपसे बताया है कि अब ये जो है ‘आखरी जजमेन्ट’ आ गया है। इस वक्त में आप अगर अच्छाई को पकड़ें तो आप उठ जाएंगे और अगर बुराई को पकड़ें तो आप दब जाएंगे। हमें देखना चाहिए कि किस तरह से जगह-जगह भूकम्प आते हैं तो क्या होता है। अभी गुजरात में बड़ा भारी भूकम्प आया था। वहाँ हमारे सिर्फ अठराह सहजयोगी थे। वो भी क्योंकि गुजरातियों को पता नहीं क्या, सहजयोग से खास मतलब नहीं है। अब टर्की में भी बड़ा भारी भूकम्प आया। वहाँ भी जितने सहजयोगी थे सब बच गये, सब एक से एक। उनके घर भी बिल्कुल सही सलामत। मैंने देखे खुद, क्योंकि आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गये हैं। तो आपका संरक्षण है, तो आपको कोई मार नहीं सकता। कोई आपको नष्ट नहीं कर सकता। ऐसे ही और भी जगह है जहाँ भूकम्प हुए। वहाँ भी हमने यही देखा है कि सहजयोगी एक भी नष्ट नहीं हुआ, ना उसका घर नष्ट हुआ। लातुर की ये बात है। कि लातुर में हमारा जहाँ सेंटर था उसके चारों तरफ, चारो तरफ खंदक पडे। चारो तरफ और बीच में सेंटर बिल्कुल ठीक था और एक भी लातूर का सहजयोगी मरा नहीं। कैसे हुआ? कि चतुर्दशी के दिन गणपति को विसर्जित करते हैं। सबने विसर्जन किया और विसर्जन करके आये और उनमें से जो लोग दुष्ट प्रवृत्ती के थे उन्होंने शराब ले के पीनी शुरू कर दी। शराब पी कर के नाच रहे थे और नाचते-नाचते सब जमीन के अन्दर गये। पर एक भी, एक भी सहजयोगी लातुर में किसी भी तरह से, कोई भी.बात से वंचित नही रहा। उसका घर जैसे का जैसे रहा, उसकी गृहस्थी, उसके बच्चे, सब ठीक थे। ये क्या चमत्कार नहीं है तो और क्या है! इसी प्रकार आप भी समझ लें कि परमात्मा का जो संरक्षण है वो आपके ऊपर होगा. क्योंकि आप उसके साम्राज्य में हैं। इन सारे साम्राज्यों से बाहर इतने ऊँचे आप चले गये कि आपको अब किसी भी चीज़ का भय नहीं है। कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं कर सकती। इस तरह से हमने सहजयोग में अनेको उदाहरण देखे हैं। अनेक लोगों को बीमारी से उठते देखा है। ड्रग्ज लेने वाले लोग एक रात में ही बदल जाते हैं, एक रात में बदल गये। किसी को आश्चर्य होगा कि ये कैसे हुआ? वही बात मैंने कही कि कुण्डलिनी के जागरण से अपने अन्दर की सब विकृतियाँ झड़ जाती हैं और इस तरह से हर जगह ये कार्य हो रहा है। और लोग अब ये महसूस कर रहे हैं, इसको समझ रहे हैं कि परिवर्तन की बहुत जरुरत है। इस परिवर्तन के सिवा कुछ भी नहीं बदल सकता। कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। ये मनुष्य ही है जो सब गड़बड़ करता है। और ये मनुष्य ही है जो खुद इसको उठायेगा, और आगे बढ़ायेगा। बड़ा विश्वास है मुझे कि जिस तरह से यहाँ सहजयोग बढ़ा है और भी आगे बढ़ता रहे और अनेक प्रांगण में, अनेक स्थिति में इसका प्रकाश चारों तरफ फैल रहा है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद!

I am sorry I had to speak in Hindi Language because most of the people are here Hindi. Moreover, I did not know whether to speak Urdu..or (unclear) because we have lots of languages. And they all have different-different views. As it is whatever I have told them is very simple which you all know that you have to have your kundalini awakened. Because that is your pure desire. And to achieve that pure desire you don’t have to do anything. It just works out as you have seen for which you don’t have to pay, for which you don’t have to stand on your heads, for which you don’t have to give up anything. This is not a new thing for you as you all know, and you have achieved it. What I am very proud of that in this country we have the heritage of saints and of many people who have talked about it. But in your countries, nobody even expected that there could be such a power that could give you this awakening. But just imagine it has worked wonders. Now as you know we are working in 86 countries, while I am not visiting them neither have I energy to go to all of them. But how it is working, because when you got it, you took it with you, and you give it to others. One person can give realization to thousand people, you know that. So, the way you people have accepted Sahaja Yoga and have taken up as a mission. I wish everywhere in every country people do that. If you have to change this world, if you have to change our circumstances. It is very important to see what is your role, what is your life itself. what is your existence for? After realization your existence is for giving realization to people. This you must realize. Nothing is more important. Job is not important, money earning is not important, position is not important but give realization to people and otherwise everything will ..(unclear)

For example, I see here camera, you see for camera I don’t have to do anything. Only if you click it, you get the photograph. Sahaja Yoga is like that. That you should decide. If you should really decide in your hearts that we are going to spread Sahaja Yoga out and out. Nobody can stop it. Because with the help of God Almighty that you can do it, which is a very simple work and that is more satisfying. That’s all I have to say to people who are Sahaja yogis abroad. They should first think of spreading Sahaja Yoga and saving people. It is their basic, minimum of minimum idea should be about self realization. You don’t know how one feels happy to see so many people getting realization. And it is such a joy giving thing to give realization to people. I know so many of you are doing that way. But all of you should do it, all of you have to work it out instead of getting lost to nonsensical things. This is my request is and I would say that there are so many great people among you. You should follow their moral and try to make a beautiful world out of this horribly threatening useless world.

May God Bless you!

It is very important, and it is the most precious thing that has happened to you. Then you will understand what is your value.

Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi (India)

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