Dhyan Kaise Karein, How to Meditate

Dhyan Kaise Karein, How to Meditate 1976-05-29

Location
Talk duration
44'
Category
Public Program
Spoken Language
Hindi

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29 मई 1976

Public Program, Dhyan Kaise Karein, How To Meditate

Public Program

मुंबई (भारत)

Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft

How to Meditate, Bombay

29 May 1976.

...आपसे दादर में मैंने बताया था कि सहजयोग में पहले किस प्रकार [अस्पष्ट] समाधि लगती है। तादात्म्य के बाद आदमी को सामीप्य हो सकता है और उसके बाद सालोक्य हो सकता है। लेकिन तादात्म्य को प्राप्त करते ही मनुष्य का इंटरेस्ट (Interest) ही बदल जाता है। तादात्म को पाते ही साथ, मनुष्य की अनुभूति के कारण वो सालोक्य और सामप्य... सामिप्य की ओर उतरना नहीं चाहता। माने ये की जब आपके हाथ में से चैतन्य की लहरियां बहने लग गई और जब आपको दूसरों की कुंडलिनी समझने लग गईं और जब आप दूसरों की कुंडलिनी को उठा सकें, तब उसका चित्त इसी ओर जाता है कि दूसरे की कुंडलिनी देखें और अपनी कुंडली को...कुंडलिनी को समझें। अपने चक्रों..अ..चक्रों के प्रति जागरूक रहें और दूसरों के भी चक्र को समझता रहे। आकाश में भी अगर आप निरभ्र आकाश की ओर देखें या बादल हों तब भी देखें, आपको दिखाई देगा कि अनेक तरह की कुण्डलिनी आपको दिखाई देगी। क्योंकि अब आपका चित्त कुण्डलिनी पे गया है। आपको कुण्डलिनी के बारे में जो कुछ भी जानना है, जो कुछ भी देखना है, जो कुछ भी सामिप्य है, वो जान पड़ेगा।

बैठो...बैठो...बैठो...। बीच में आके, देर से आके, बीच में नहीं आते। चलो...।

कुण्डलिनी के बारे में, इंटरेस्ट जो है, वो बढ़ जाता है। बाकि के इंटरेस्ट (Interests) अपने आप ही लुप्त हो जाते हैं। ऐसा ही समझ लीजिए कि आप जब अपने बचपन को छोड़ कर के जवानी में आ जाते हैं, तो आपके जवानी के जो इंटरेस्ट हैं, आपकी नौकरी, धंधा, बीबी, बच्चे; उसमें आपके इंटरेस्ट आ जाते हैं। उसके बाद जब आप उस इंटरेस्ट से और भी गहनता में इसमें जाते हैं तो आपके बाकि के जो कुछ भी शौक़ हैं वो गिरते जाते हैं। अनुभूतियां गिरती जाती हैं और नई अनुभूतियों की ओर आपकी दृष्टि जाती है। या इस प्रकार समझें कि... जैसे, एक मनुष्य को गाने में रुचि नहीं है और किसी तरह से उसको गाने में रूचि हो गई। शास्त्रीय संगीत में उसे रूचि हो गई। तब से उसे कोई-सी भी अशास्त्रीय संगीत की महफिल हो, वहां मजा नहीं आने वाला।

उसी प्रकार सहजयोग में आपकी हालत हो जाना चाहिए और वास्तविक बाकी के जो कुछ भी आदतें हैं या जो कुछ भी शौक़ हैं, वो तो आपके अंदर धीरे-धीरे आती हैं , प्रयत्नपूर्वक आती हैं। इसके कारण वो चीज आपके अंदर चिपक बहुत आसानी से जाती है। हालाकि सहजयोग से आपके अंदर क्रांति हो गई है। आप एक नए अवेयरनेस (awareness) में, एक नई चेतना में, आए हुए हैं। आपको वाइब्रेशन (Vibration) समझ में आते हैं। आपको दूसरों की कुण्डलिनी दिखाई देती है। आपमें से बहुत लोग जागरुक भी कर सकते हैं और बहुत से लोग पार भी कर सकते हैं। हजारों लोगों का आप लोगों ने ठीक भी किया। नई शक्ति में आपका पदार्पण हुआ है और जिस से आप प्लावित हैं। लेकिन ये सब करने में एक ही बात का दोष रह गया है कि आपने कोई भी प्रयत्न नहीं किया बगैर प्रयत्न के ही सट से हो गया। इसके ही कारण, शायद हो सकता है कि बहुत से लोग जो सहजयोग में वाइब्रेशनस (Vibrations) पा भी लेते हैं, ऊंचे उठ भी जाते हैं, तो भी उनका चित्त परमात्मा की ओर, आत्मा की ओर, कुंडलिनी की ओर नहीं रहता है और अब भी वो चित्त बार-बार, बार-बार गलत जगह पे जाते रहता है।

आपने पूछा था कि पाने के बाद क्या करना है ? पाने के बाद देना ही होता है। ये बहुत परम आवश्यक चीज है कि पाने के बाद देना होगा। नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं है। और देने के वक्त में एक बात सिर्फ एक छोटी-सी बात याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिस मन से, जिस बुद्धि से, माने इस पूरे व्यक्तित्व से, आप इतनी जो अनुपम चीज दे रहे हैं वो स्वयं भी बहुत सुंदर होनी चाहिए। आपका शरीर स्वच्छ होना चाहिए। शरीर के अंदर कोई बीमारियां नहीं होनी चाहिए। गर आपको गर कोई बीमारी है; बहुत से सहजयोगियों में ऐसा भी होगा कि उनके अंदर गर शारीरिक बीमारी है तो सहजयोग से पहले तो वो बहुत कहते होगें कि साहब मेरी ये बीमारी है वो ठीक होना चाहिए, वो बीमारी ठीक होना चाहिए। लेकिन सहजयोग के बाद में इतना चित्त नहीं रहेगा बीमारी की ओर।

....अरे! हो जाएगा ठीक।चलो, ठीक है, ये बात गलत है। आपको कोई भी जरा-सा भी तकलीफ हो जाय, आप फौरन वहां हाथ रख के अपनी तबीयत ठीक कर सकते हैं। अपनी फिजिकल साइड (Physical Side) बहुत साफ रख सकते हैं। बहुत ज्यादा उसमें कुछ ये करने की जरूरत नहीं है। स्नान करना और स्वछता से रहना और अपनी फिजिकल साइड ठीक करना। लेकिन, उसके लिए मैंने एक चीज का कहा है; जैसे, सवेरे कहते हैं कि सबको बाथरूम जाना चाहिए। मुख साफ करना चाहिए, तो सहजयोगियों के लिए सोने से पहले पानी में बैठना ५ मिनट अत्यंत आवश्यक है। वो चाहे कोई भी हो। आप बड़े पहुंचे हुए हों। आपका हमें नहीं पकड़ता, ये इससे हमें मतलब नहीं है। आपको ५ मिनट पानी में बैठना चाहिए। आपलोगों को ये आदत लगे, इसलिए मैं जबरदस्ती बैठती हूं, कभी-कभी, कि चलो, मैं भी पानी में बैठती हूं तो मेरे सहजयोगी बैठेंगे। ये आदत बहुत ही अच्छी है। एक-पांच मिनट पानी में सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए। फोटो के सामने दीप जलाकर के, कुमकुम बगैरह लगा के फोटो के सामने दोनों हाथ रखें। दोनों पैर पानी में रख के सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए। आपकी आधे से ज्यादा प्रॉब्लम सॉल्व (solve) हो जाएंगे, अगर आप ये करें। चाहे कुछ हो जाय, आप ५ मिनट की कोई मुश्किल नहीं है। सोने से पहले पानी में सबको बैठना चाहिए। इससे आपका जो है, आधे से ज्यादा पकड़ना खतम हो जाएगा। सवेरे के टाईम में जल्दी उठना चाहिए। हमलोगों का सहजयोग, दिन का काम है, रात का नहीं। इसलिए रात को जल्दी सोना चाहिए। माने ६ बजे सोने की बात नहीं कह रही मैं। लेकिन करीबन १० बजे तक सबको सो जाना चाहिए। १० बजे के बाद सोने की कोई बात नहीं, सवेरे जल्दी उठना चाहिए। सवेरे के टाइम में जल्दी उठकर के नहा-धो करके ध्यान करना चाहिए। सवेरे ध्यान में बैठना चाहिए। जैसे कि हमारे यहां, हम लोग सवेरे उठ कर के अपना मुंह धोते हैं और सालों से धोते आ रहे हैं, हर साल धोते हैं और जिंदगी भर धोते रहें। उसी प्रकार हर मनुष्य को सवेरे उठकर के, सहजयोगियों को चाहिए कि वो ध्यान करें। ये आदत लगाने की बात है। लेकिन, मैंने देखा है कि बहुत से लोग ४ :00 बजे या ५ :00 बजे उठना बहुत उनको मुश्किल होता है। उसकी कारण एक है, मनुष्य को बहुत मैंने स्टडी किया है। उसके बारीक चीजें बहुत समझीं हैं और बड़ा मजा आता है, उसको स्टडी करने में। वो किस तरह से अपने साथ भागता है और वो अपने साथ ही किस तरह से आर्गूमेंट (Argument) देता है, वो देखने लायक चीज है, मनुष्य की। बड़ा खुद ही वो अ... खुद ही की नाक कटाने के लिए किस तरह से अपने ही का एक्सप्लेनेशन (Explanation) खुद ही देते रहता है। वो इस प्रकार कभी-कभी होता है कि जैसे, हम तो सवेरे उठ ही नहीं सकते, मां। भई! कितने बजे सोए थे रात को? १२:00 बजे। पर मैंने तय किया था कि मैं ४:00 बजे उठूंगा, हो ही नहीं सकता। लेकिन, आप एक दिन जल्दी सोएं और एक दिन आप उठें, हर हालत। तो आप जल्दी सो ही जाएंगें। आप जग नहीं सकते। दो-तीन दिन आप कर लीजिए, शरीर ऐसा है, इसको आदत लग जाएगी। सवेरे जल्दी उठने से, सवेरे के टाइम में, एक तरह की रिसेप्टिविटी (Receptivity) ज्यादा होती है, मनुष्य की और इतना ही नहीं, उस वक्त में संसार में भी बहुत अत्यंत सुंदर प्रकार के......

....... ये मशीन है, न। ये बरोबर है। [मराठी भाषा--- माणसांचं असंच होतं कधीकधी, डोकं भडकतं ...समजत नाही का ?]

.......तो शरीर की दृष्टि से, मैंने आपसे बताया और दूसरा ये कि सवेरे उठके ध्यान करना। अब ध्यान कैसे करना है? सोचों । ध्यान कैसे करना, सवेरे उठके? पहले नतमस्तक होके अपने को अपने हृदय में नत करें। पहली चीज है नत करना है। Humble Down Yourself. किसी ने ये सोच लिया कि मैंने बहुत पा लिया, या मैं बहुत कुछ बड़ा भारी संत-साधू हूं, महात्मा हूं, तो समझ लीजिए, वो गया। सहजयोग से गया। अत्यंत नम्रतापूर्वक अपने हृदय की ओर ध्यान करके, नत मस्तक होके फोटो के सामने दोनों हाथ करके शांतिपूर्वक परमिशन (Permission) लेकर के बैठें। बात-बात में क्षमा मांगनी पड़ती है। सो.., उस वक्त भी क्षमा मांग के कि हमसे अगर कोई गलती हो, उसे माफी करके ध्यान में आज हमें उतारिए। इस तरह की प्रार्थना करके जिन्हों से हमने बैर किया है, सबको माफ कर देते हैं और हमने गर किसी से बैर किया, उसके लिए तुम हमें माफ कर दो। अत्यंत पवित्र भावना मन में लाकर के और आप ध्यान में जाएं। आंख बंद करके और थोड़ी देर ध्यान करें। आप कितने मिनट करें, इससे कोई मतलब नहीं होता है। ये सवाल पूछना बहुत गलत बात है। आप ५ मिनट करिए और चाहे १० मिनट करिए। ५ -१० मिनट एकाग्रता से आप ध्यान करें। नतमस्तक हो करके आप ध्यान करें। पर ध्यान करने से पहले, इसको समझ लें। ध्यान करने से पहले जहां बैठ रहें, उस आसन में बंधन दें। अपने को बंधन दें। अपने शरीर को बंधन दें। सात मर्तबा अपने शरीर को बंधन दें। स्थान को बंधन दें। फोटो को बंधन दें। ये तो हो गया मैकेनिकल बार (Mechanical way) करने का; क्योंकि कुछ-कुछ लोग तो यूं-यूं कर लेते हैं, हो गया काम खतम। ऐसी बात नहीं है। विचारपूर्वक अत्यंत श्रद्धा से, जिस तरह से पूजा में बैठें हैं, अत्यंत श्रद्धा से, मौन रख के और बंधन लें। उस वक्त में ये नहीं कि जैसे, पूजा में लोग कहते हैं, भई, वो ले आओ, ये ले आओ, इस तरह से नहीं। और उसके बाद अपने मन को बंधन दें। अब मन कहां होता है? आपने आज तक मुझसे नहीं पूछा कि मां! मन कहां होता है? मन यहां होता है। यहां उसकी शुरुआत है। माने विशुद्धि चक्र और आज्ञा चक्र को बहुत जबरदस्त बंधन दें। मन को भी बंधन देना है और ये विचार करें कि हम प्रभु तेरे ही बंधन में रहें। हमारे ऊपर कोई बुरा असर ना आए, अत्यंत नतमस्तक हो करके। और उस वखत में, ये सोच के कि हम साक्षी हैं और सब चीज से हम अलग हटकर के हम निर्मल हैं। उस चीज से, हम उससे अछूते हैं। सब चीज से अपने को हटाकर के और अब आप बैठ रहे हैं। आप ऐसा प्रयत्न रोज करें। आपको इसी की एक प्रकार से आदत लग जाएगी। अत्यंत श्रद्धा पूर्वक ध्यान करें, सवेरे का समय। चाहे १० मिनट और चाहे आधे घंटे, उसका कुछ फरक नहीं पड़ता। ध्यान करते वक्त में, कुछ हाथ ऊपर-नीचे मत करिए। ध्यान करते वक्त में, सिर्फ फोटो की ओर दृष्टि रखते-रखते आंख को बंद कर लें और कोई हाथ-पैर घुमाने की जरूरत नहीं। उस वक्त कोई-सा भी चक्र जो खराब हो, उस चक्र की ओर सिर्फ दृष्टि करने ही से वो चक्र ठीक हो जाएगा। क्योंकि, उस वक्त मैंने कहा है कि गति ज्यादा रहती है, सवेरे के टाइम में। अब, पहले तो अपने चक्र बगैरह शुद्ध हो गए। उसके बाद अपने आत्म-तत्व पर विचार करें या अपने आप पर करें। आत्मा की ओर चित्त ले जाएं। आत्मा कहां होता है? किसी ने मुझसे ये भी नहीं पूछा आज तक, कि मां आत्मा कहां होता है? आत्मा हमारे हृदय में होता है। लेकिन उसकी सिर जो है, यहां सहस्त्रार के ऊपर में.. तो, इसलिए मैंने कहा था कि हृदय में नतमस्तक हों और चित्त जो है सहस्त्रार की ओर ले जाके आत्मा की ओर समर्पित हों। विचार से ही आत्मा की ओर समर्पित हों। आत्म-तत्व का इसेन्स (essence) क्या है? आत्म-तत्व जो है, वो पवित्रता है। पूरी निर्मल पवित्रता कहिए। उसके ओर नजर करें। वो पूर्णतया अलिप्त है। किसी चीज में लिप्त नहीं। जो भी चीज आपसे लिपटी हुई है, उसी के कारण आप आत्मा से दूर हैं। आत्म-तत्व का विचार करें और ये आत्म-तत्व प्रेम है। अनेक बार इसका विचार करें। बहुत बड़ा विचार है। आत्म-तत्व प्रेम है। बहुत अनेक धर्म संसार में संस्थापित हुए हैं। लेकिन, उसमें प्रेम की व्याख्या कोई कर नहीं पाया। इसके कारण उसके अनेक विपर्यास हो गए। प्रेम की व्याख्या नहीं हो पाती। लेकिन प्रेम वही शक्ति है, जो आपके हाथ से बह रही है, वही चेतना है जिसे लोग चेतना के नाम से जानते हैं। लेकिन ये नहीं जानते कि ये प्रेम है। चेतना को ऐसी शक्ति समझ लेते हैं, जैसे बिजली और पंखा है। नहीं...। आत्म-तत्व प्रेम है। एक शब्द आप 'प्रेम' कहते ही साथ आपके अनेक बंधन टूट जाते हैं। जितना झूठ है, असत्य है, वो प्रेम के विरोध में है। अगर आप किसी को डांटते भी हैं और उसको सत्य बता रहे हैं तो आप प्रेम कर रहें हैं। आप स्वयं प्रेम हैं। इसलिए प्रेम-तत्व पे आप विचार करते ही, आप आत्म-तत्व में उतर सकते हैं।

ध्यान में कौनसा भी एक विशेष विचार नहीं लेने का। लेकिन, अब आप कह सकते हो... हैं.. कि मैं वही प्रेम-तत्व हूं, मैं वही आत्म-तत्व हूं, मैं वही प्रभु की शक्ति हूं, आप इसे कह सकते हैं। इस तरह से 2-3 बार कहते ही आप आशीर्वादित होएंगे; क्योंकि आप सत्य कह रहे हैं। आपके अंह...अंदर से वाइब्रेशनस (Vibrations) जोर से चलने लग गए।

अब रोजमर्रा के जीवन में ही क्या करना चाहिए? रोजमर्रा के जीवन में आपको पता होना चहिए कि आपके अंदर शक्ति प्रेम-तत्व की है। आप जो भी कार्य कर रहे हैं, क्या प्रेम में कर रहे हैं या दिखाने के लिए कर रहे हैं कि आप बड़े भारी सहजयोगी हैं? हम गर कभी किसी को कोई बात कहते हैं या डांटते हैं तो हम देखते हैं कि दूसरे दिन वो आ करके सहजयोगियों में बैठकर हमें गालियां देते हैं लोग। और उसके बाद कहते हैं कि हमारे वाइब्रेशनस (Vibrations) क्यों चले गए? तो इस तरह की गर आप मूर्खता करते हों, तो बेहतर है कि आपलोग सहजयोग में नहीं आएं। सहजयोग में वही आदमी आ सकता है और चल सकता है, जो कुछ लेना चाहता है। उसको देने का कोई भी अधिकार नहीं है। उसको लेना ही है, हमसे। वो अगर देना चाहेगा, उसकी वो शक्ति जब हो जाएगी, तो बहुत ही बढ़िया चीज हो जाएगी। लेकिन, आप तभी दे पाते हैं, जब आप ले पाते हैं। इसलिए पहले लेना सीखिए। हमारे अंदर क्या दोष है? रोज के जीवन के इसमें आप देखते चलें कि हम क्या चीज दे रहे हैं? हम प्रेम दे रहे हैं। क्या हम स्वयं साक्षात् प्रेम में खड़े हैं? हम, सब से लड़ते हैं। सबसे झगड़ा करते हैं। सबको परेशान करते हैं और हम सोचते हैं कि हम सहजयोगी हैं। इस तरह की गलतफहमी में नहीं रहना। अपने साथ पूर्णतया दर्पण के रूप से रहना चाहिए। माने अपने को पूरी समय देखते रहिए। समझ लीजिए, हमारे माथे में कोई चीज लग गई, तो आप बताएंगें, माताजी! आपके सर में कुछ लगा है, इसको पोंछ लीजिए। इसी प्रकार आप अपने को देखते रहें; देखिए, हमारे यहां पर ये चीज लग गई है, इसको हम पोंछ लेते हैं।

रोजमर्रा के जीवन में आपका जीवन एक उज्जवल होना चाहिए। आपके मुख पे कांति आनी (चाहिए)। आपके व्यवहार में सुंदरता आनी चाहिए। आप प्रेममय होना चाहिए। फूट...फूट के जैसे अगर आप बिल्कुल ही रस...हीन हों, तो आप सहजयोगी नहीं हैं। ये आपको पता होना चाहिए। जबरदस्ती के आप सहजयोगी बनें हैं, वो भी हम आपको चला रहे हैं, इसलिए आप बैठे हुए हैं। नहीं तो हमें आप माफ कर दें और आप सहजयोग में न आएं। थोड़े दिन में आप खुद ही निकल जाएंगे, इस तरह के लोग। जिनमें प्रेम नहीं है, जो अपने को सोचते हैं कि हम बड़े बढ़िया आदमी हैं और बड़े कमाल के आदमी हैं और ये हैं, वो हैं; वो बिल्कुल सहजयोग के लिए व्यर्थ हैं। ऐसे लोगों को चाहिए कि जाएं दूसरे गुरुओं के जूते खाएं और वहां रहें। यहां पर सहजयोग में आप परमात्मा के एक इंस्ट्रूमेंट (instrument) बनने आ रहे हैं। अत्यंत नम्रता आपके अंदर होनी चाहिेए, अत्यंत नम्रता। आपको घमंड छोड़ना चाहिए। लोग कहते हैं कि संन्यास लेना चाहिए। मैं कहती हूं कि पहले घमंड से आप सं...संन्यास लें। क्रोध से आप संन्यास लीजिए। कपड़ों से नहीं लीजिए। कपड़े उतार देने से कोई संन्यास नहीं होता है। संन्यास का अर्थ होता है, अपने क्रोध, काम, मोह, मद, मत्सर आदि षट् रिपुओं से संन्यास लेने को ही संन्यास कहते हैं। संन्यस्त...।

ऊपरी संन्यास की बातचीत नहीं। तो अपने रोज के व्यवहार में, अत्यंत शांति से सबसे प्रेम से व्यवहार करो। अपने बाल-बच्चे, घरवाले, उनसे सबसे सहजयोग की बातचीत करें। सहजयोग पर भी मनन करें। अपने दोस्त बदलिए। अपना उठना-बैठना बदलिए। ये

आपके रिश्तेदार हैं। ये आपके सगे हैं, इनसे बातचीत करें। इनसे बोलें और ये लोग आपको बताएंगे कि हमलोग एक नई दुनिया में आ गए और हमारे पास एक नये वाइब्रेशनस (Vibrations) हैं। जब भी आप सफर करें, कहीं बाहर जाएं, किसी गांव जाना है; वो बता रहे थे, अभी राहुरी से आए हैं कि हम अपने साथ में जैसे [अस्पष्ट] लो..लोग लेकर चलते हैं, चीजें अपने ट्रैवलिंग (Travelling) की, वैसे हम अपने साथ में थोड़ा-सा तीर्थ, वो मेरे पैर के पानी को तीर्थ कहते हैं, तीर्थ और कुमकुम और ये सब वाइब्रेटेड (Vibrated) हम लेके चलते हैं। रास्ते में कोई आदमी बीमार दिखाई दिया, चलो उसको तीर्थ पिला दिया। कोई आदमी धर्म की चर्चा की, उसको फोटो दिखा दिया; देखो भई! ये माताजी हैं और तुम चाहो तो उनको पार कर सकते हो। जहां जो आदमी मिल जाए, वो अपने साथ रखे रहिए; अच्छा चलिए, अभी हम आपको कुमकुम लगा देते हैं, देखिए, आपको कैसे लगता है? ये हमारी माताजी हैं। पूरी समय दिमाग इधर-उधर अ.. दौड़ता रहे कि सहजयोग को किस तरह से हम प्लावित अपने जीवन में कर सकते हैं, उसी समय आप देखिए कि आप बहुत गहरे उतर सकते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं कि सहजयोग में सिर्फ ऐसे आते हैं, जैसे मंदिर में आए, चले गए और फिर उसका दुष्परिणाम हमेशा आएगा। यहां पे ऐसे लोग हैं अभी बैठे हुए कि जिन्होंने जब से सहजयोग से पार हुए हैं, तब से कोई उनको एक बीमारी नहीं आई। मां बीमार थें। उनको कभी बीमारी नहीं आई। एक बार भी वो डॉक्टर की सीढ़ी नहीं चढ़ें। कभी उनको कोई तकलीफ नहीं हुई। उन्होंने एक दवा नहीं ली, जबसे वो सहजयोग में आएं। बुढ्ढे भी हैं, उनमें से कुछ। जो हमेशा डॉक्टर के पास जाते थे और अस्पतालों में घूमा करते थे, वो सब कभी भी नहीं गए। ऐसे यहां बहुत से अनेक उदाहरण हैं। इतना ही नहीं, पर उन्होंने दूसरों को भी भला किया है। इसका कारण ये है कि जो कुछ भी स्वास्थ्य के लिए एक सहजयोगियों के लिए आवश्यक है, वो-वो करते रहें और इस वजह से वो ठीक हैं। आपस में मिलते रहो। आपस में सब तुम डॉक्टर्स हो, सब पेशेंट्स और डॉक्टर लोग आपस में फीस नहीं लेते, उस प्रकार तुम भी आपस में फीस नहीं लेते हो। आपस में ट्रीटमेंट करो, आपस में पूछ लो और उसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं है। किसी ने कहा कि आपका सहस्त्रार पकड़ा है तो, तो बड़ी शरम की बात है। सहस्त्रार पकड़ना तो बड़ी शरम की बात हो गई। वो तो हमारे विरोध में बैठ जाएगी बात। उससे कहना, "भई, फौरन ठीक कर दो। पता नहीं कैसे आदमी के साथ मैं बैठ गया।" किसी ऐसे आदमी के साथ कभी नहीं बैठना चाहिए, जो सहजयोग की बुराई करता है, सहस्त्रार फौरन पकड़ जाएगा। ऐसा आदमी गर बोला, तो कान बंद कर लो और ऐसे आदमी से कहना, "अरे भई! तुम दूर बैठो। हम...हमसे तुमसे मतलब नहीं है। तुम हमारे से बात मत करो, बस। हमको कोई अपना बुरा नहीं करना। आप कौन होते हैं, हमसे बात करने के लिए? आप यहां माताजी के वजह से हमसे मिले हैं और अब आप चुप रहिए।" ऐसे जो भी आदमी बात करता है, उससे कहना, "बस.., बस करिए।" आपका सहस्त्रार पकड़ेगा, फिर एक-एक चक्र पकड़ेगें, हो गया। थोड़े दिन में आएंगे, "माताजी! मुझे कैंसर हो गया। एक दो को कैंसर भी हुआ, हमारे...। अब, तो ठीक हो गए। लेकिन What?

और कैंसर बीमारी जो है, वो तो बिल्कुल सहस्त्रार की बीमारी है। पक्की समझ लीजिए। अ..कैंसर से गर बचना है तो अपना सहस्त्रार साफ रखो। सहस्त्रार तुम लोगों ने पकड़ना शुरू कर दिया, तो कैंसर की शुरुआत हो गई। मैं आपसे बता रही हूं। सहस्त्रार हमेशा साफ रखो और हो सकता है कि आज नहीं कल, आठ साल बाद आपको पता लगा कि शायद मेरी साथ, हमें कैंसर हो गया। तो क्यों न अभी से अपने को स्वास्थ्य-पूर्ण रखें और इतना ही नहीं, सहजयोग का कार्य करें? जिसके कारण हम परमात्मा के राज्य में बैठें हैं और जब कल संसार में उन लोगों को चुना जाएगा, जो परमात्मा के हैं, उनमें से आप एक श्रेष्ठतम लोग होगें। क्यों न ऐसा कार्य करें, जिससे सब व्यर्थ का समय हम बर्बाद कर रहे हैं, इसके घर जाओ, रिश्तेदार के घर खाना खाओ, फलाने के घर घुसो, उसकी बुराई करो; छोड़-छाड़ करके और अपने मार्ग को ठीक बनाएं और ऐसा जीवन बनाएं कि संसार में उन लोगों का नाम हो। सबको सोचना चाहिए। कोई ये भी सोचें कि भई, अब मेरी उमर ही क्या रह गई है? अब तो क्या कर सकता हूं? सो बात नहीं। आप मरेगें ही नहीं, आप मरते हैं, फिर आप पैदा होते हैं। फिर आप मरेगें, फिर पैदा होएगें। ये चक्कर चलते रहेगें। तो क्यों न उसको एक साल के अंदर आप सभी चीज को खतम कर सकते हैं? चाहे तो आप एक हफ्ते में भी खतम कर सकते हैं। एक बार निश्चय मात्र करना है। एक क्षण, तो भी खतम हो जाएगा। अपने जीवन को कुछ विशेष करना है। ये एक बार इतना ही निश्चय कर लेने से ही सहजयोग का लाभ अत्यंत हो सकता है, ये आप जानते हैं।

शरणागती होनी चाहिए। जरूरी नहीं कि मेरे पैर पर आएं। पर शरणागती मन से होनी चाहिए। बहुत से लोग पैर पे आते हैं, शरणागती बिल्कुल नहीं है। शरणागती होनी चाहिए। गर शरणागत रहें, अंदर से, पूर्णतया शरणागत रहें, तो पूर्णतया आपके अ..अंदर कुण्डलिनी जो है, सीधे आत्म-तत्व पे टीकी रहेगी; जैसे कि एक दीप की लौ लगी रहती है, उस तरह। एक भी उसमें फ्लिकरिंग (Flickering) नहीं होगा। लेकिन शरणागत रहें। शरणागत रहने में आनंद है। उसी में सुख की प्राप्ति है। उसी में परमात्मा की प्राप्ति है। एक बहुत अनुपम, विशेष, यूनिक (Unique) चीज है, सहजयोग। इसको समझें और उसमें रत रहें। जितने आप उसमें तादात्म्य पाएगें, उतना ही आपका आत्म-तत्व चमक सकता है। कोई चीज महत्वपूर्ण नहीं है। सिवाय इसके कि आप स्वयं प्रकाश बनें और जिनको बेकार की बातें सुझती हैं, उनके लिए बेहतर है कि वो इस चीज को छोड़ दें, उनके बात नहीं है।

अब आखिरी बात बताऊंगी, जिसको बहुत समझ के और विचार पूर्वक करें। हमारे अंदर स्वयं ही दुष्ट प्रवृतियां हैं। हमारे ही अंदर स्वयं बहुत-सी काली प्रवृतियां हैं, जिसको निगेटिविटि (Negativity) कहते हैं। वे जोर बांधती हैं। उसके कब्जे में आना, अपने को शैतान बनाना है। आप चाहें तो शैतान बन सकते हैं और चाहें आप परमात्मा बन सकते हैं। शैतान गर बनना है तो बात दूसरी। उसके लिए मैं गुरु नहीं हूं। भगवान बनना है तो उसके लिए मैं गुरु हूं। लेकिन शैतान से बचना चाहिए। पहली चीज है कि अमावस्या की रात या पूर्णिमा की रात को, लेफ्ट (Left) और राइट साइड (Right side) दोनों तरफ में, आपको डेंजर्स (dangers) होते हैं। दो दिन विशेषकर, अमावस्या की रात्रि को और पूर्णिमा के रात्रि को बहुत जल्दी सो जाना चाहिए। भजन करके, रत होके, ध्यान करके, चित्त सहस्त्रार में डाल के, बंधन डाल के सो जाना चाहिए। मतलब चित्र... चित्त सहस्त्रार में जाते ही आप अचेतन में चले गए। वहां अपने को बंधन में डाल दिया, आप बच गए। दो रात्रि को विशेष रूप से और जिस दिन अमावस्या की रात्रि हो, उस दिन विशेषकर, अमावस्या के दिन, आपको शिवजी को ध्यान करना चाहिए। शिवजी का ध्यान करके, उनके हवाले अपने को करके सोना चाहिए, आत्म-तत्व पर। और पूर्णिमा के दिन आपको श्री रामचंद्र जी का ध्यान करना चाहिए। उनके ऊपर अपनी नैय्या छोड़ के, और रामचंद्र जी का मतलब है क्या? क्रिएटिविटी (Creativity) का, अपने जो क्रिएटिव पावर्स (Creative Powers) हैं, उसको पूर्णतया समर्पित करके और आपको रहना चाहिए। इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिए। हालांकि, 'सप्तमी और नवमी' दो दिन विशेषकर आप पर आशीर्वाद हमारा रहता है, सप्तमी और नवमी के दिन। उसका ख्याल रखना। सप्तमी और नवमी के दिन जरूर ऐसा कोई आयोजन करना जिसमें ध्यान आप अपना पूरा करें।

सामूहिक ध्यान उसी जगह करना, जहां मेरा पैर पड़ा हुआ है, जो चीज शुद्ध हो चुकी है। सामूहिक ध्यान अपने घर में भी किसी के साथ बैठके मत करना। अपने रिश्तेदारों के साथ भी बैठकर के सामूहिक ध्यान नहीं करना है। जिस जगह मैंने कहा है, वहीं सामूहिक ध्यान करना और बैठकर सहजयोग की चर्चा भी बहुत देर तक ऐसी जगह नहीं करना चाहिए, जहां मेरा पैर पड़ा नहीं। क्योंकि वहां तुम्हारे अंदर भूत आके बोलने लगेगें, आपस में झगड़ा शुरू हो जाएगा, क्योंकि तुमलोग अब भी भूतों के कब्जे से बचे हुए लोग नहीं। कहां से भूत आता है, वो समझ में नहीं आता और भूत सारे काम करता है। इस तरह से अपनी रक्षा करने की बात है और जब कभी भी आप बाहर जाएं, कहीं भी घर से बाहर जाएं तो अपने को पूर्णतया बंधन में रखें। बंधन में रखने से हर समय बंधन रखें। किसी से देखा कि किसी का आज्ञा चक्र पकड़ा है कि चित्त से ही चाहे उसपे बंधन डाल दीजिए। जिस आदमी का आज्ञा चक्र पकड़ा है, उससे कभी भी आर्गूमेंट (argument) करना नहीं चाहिए। ये तो बेवकूफी की बात है। जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, तो क्या आप भूत से आर्गूमेंट (argument) कर सकते हैं। जिसका भी आज्ञा चक्र पकड़ा है, उससे कभी भी आ..ह.. आप आर्गूमेंट (argument) नहीं करिए। बिल्कुल नहीं। उं.. कहना ठीक...ठीक...ठीक...। आप ठीक हैं। चलो...। क्योंकि कोई पागल आदमी होता है न, उसको ऐसे ही कहते हैं ना, "हां भई, ठीक है। तुम ठीक हो। ठीक हो जाओगे।" आर्गूमेंट (argument) नहीं करना चाहिए, जिसका आज्ञा चक्र पकड़ा है, पहली चीज। जिसका विशुद्घि चक्र पकड़ा है, उससे भी आर्गूमेंट (argument) नहीं करना चाहिए। जिसका सहस्त्रार पकड़ा है, उसके तो दरवाजे भी खड़ा नहीं होना चाहिए। उससे कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए, आपको। कहना, "अपना सहस्त्रार ठीक करो, भई।" उसको कहने में कोई हर्ज नहीं कि तुम्हारा सहस्त्रार पकड़ा हुआ है। सहस्त्रार साफ रखना है। अगर किसी का सहस्त्रार पकड़ा लगे तो फौरन जाके कहना, " भई! मेरा सहस्त्रार तुम लोग उतार दो, किसी तरह से।" सहस्त्रार किसी का पकड़ा हो और वो आपसे बातचीत करे, कुछ करे, कहना, "तुम अपना दुश्मन है।" उस आदमी के बिल्कुल उस वखत बात नहीं करने, जब तक उसका सहस्त्रार पकड़ा है।

अब, रही हृदय चक्र की बात। जिस मनुष्य का हृदय चक्र पकड़ा है, उसकी मदद करनी चाहिए। जहां तक बन सके, उसके हृदय पर बंधन आदि डालना। अपने हृदय पे हाथ रखना। मां की फोटो की ओर उसको ले जाना। हृदय चक्र का ख्याल जरूर करना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी हृदय चक्र में, हो सकता है, दूसरे आदमी की पर...परेशानी है। हृदय चक्र में जरूर मदद करनी चाहिए। पर, बहुत से लोगों के हृदय नहीं होता है। बहुत ड्राई पर्सनालिटीज (Dry Personalities) होती है और ऐसे ड्राई (Dry) लोगों के लिए, आप कुछ भी नहीं कर सकते हो। आप चाहें भी उनका कुछ ठीक करना तो आप नहीं कर सकते, उनको छोड़ देना चाहिए। पर, वो अगर आपके पास आयें और आपसे कुछ कहें तो पहले उनसे कहना चाहिए कि आप हठयोग छोड़िए। आप दुनियाभर के काम छोड़िए और थोड़ा प्यार करना सीखिए। पहले कुत्ते-बिल्लियों को प्यार करिए, अगर इंसान से नहीं होता है। फिर इंसान से प्यार करें। खुद भी सबसे प्यार करें। बच्चों से प्यार करिए। बच्चों से ज़्यादती नहीं करिए। किसी के साथ ज़्यादती मत करिए। किसी के साथ भी आप दुष्टता मत करिए। किसी को, बच्चों को तो कभी नहीं मारना है। कोई भी सहजयोगी को अपने बच्चों को कभी हाथ से मारना नहीं है। हाथ नहीं उठाना है। किसी को मारना नहीं। किसी से भी क्रोध नहीं करना है। सहजयोगी को तो क्रोध करना ही नहीं है। उसको बुद्धिमानी से हर चीज को ऐसा सु...सुझाव लेना चाहिए कि क्रोध न दिखे। उसको कोई भी क्रोध करना नहीं। रोजमर्रा का जीवन सहजयोगी का कैसा होना चाहिए, इसके लिए आप प्रार्थना करें, उसका विचार अंदर जाएगा। मैंने अनेक तरह से आपसे बताया है। उसी प्रकार हमारा जो ये अनंत जीवन का जो संस्था है, उस संस्था के लिए हमलोग आठ-दस आदमी मिलकर के क्या करने का है, उस पर विचार करने का है। आपलोग सब अपना सहजयोग उसमें दें और सब मदद करें। अभी जिन लोगों ने अपने नाम हमारे पास दिए नहीं, जिनके नाम लिस्ट में नहीं हैं, वो अपने पते प्रधान साहब के पास भेजें और हमलोग क्वाटरली (Quarterly) एक शुरु करने वाले हैं, 'पेपर'; उसमें से मेरे पत्र, संदेश, लेक्चर (Lecture) ये सब छपेगें और इसके अलावा तुमलोग भी अपने अनुभव गर कुछ लिखो, तो वो अनुभव उसमें छापे जायेगें। सारे ऑल इंडिया (All India) के जितने भी अनुभव लोगों को आते हैं, वो हर बार उसमें थोड़े-बहुत छापे जाएंगे। इसमें अपने अनुभव लिखते जाओ। गर कोई आपलोग अच्छा लेख सहज योग पर लिखकर भेजें तो वो भी इसमें छाप दिया जाएगा। इस प्रकार एक यहां पर क्वाटरली (Quarterly) लिख ले रहे हैं, उसमें अंग्रेजी में कुछ हिस्सा रहेगा, कुछ मराठी में, कुछ हिंदी में और कुछ गुजराती में। इस प्रकार की क्वाटरली (Quarterly) हम लोग लिख रहे हैं। बन पड़े तो सब हिंदी और मराठी और गुजराती, इसका सभी का एक साथ शुरु करेगें या धीरे-धीरे करेगें, जैसा भी होता है। सहजयोग में हरेक चीज धीरे-धीरे होती है। उसको आप कॉन्ट्रिब्यूट (Contribute) करें। उसका पैसा जो कुछ भी देना है, दें। उसका जो कुछ भी आपको लाभ उठाना है, उठाएं। उस पर प्रश्न करें और प्रश्न वहां पूछें और उसका जवाब मैं एक साथ आपको दूंगी। तो क्वाटरली (Quarterly) पहले शुरु कर रहे हैं। फिर हम, मंथली (Monthly) हो जाएगी, फिर उसको हमलोग विकली (Weekly) कर लेगें। फिर वो डेली ( Daily) भी हो सकेगी। अभी बहरहाल हमलोग क्वाटरली (Quarterly) कर रहे हैं और जो भी तुमलोगों को कोई प्रश्न हो, कोई तकलीफ हो, तो उसके बारे में आप एक चिट्ठी प्रधान साहब के पास भेज दें। मुझे ज्यादा चिट्ठी नहीं लिखिए क्योंकि मेरे पास टाइम (Time) बहुत कम होता है और फिर मां ने चिट्ठी नहीं लिखीं, एक को लिखी...{मराठी भाषा -- मला लिहीलं त्यांना नाही लिहीलं } ... इस तरह की कोई भी उल्लूपना की बातें जो आदमी करता है, ऐसे आदमी के लिए सहजयोग नहीं है। आपको पता होना चाहिए कि मां सबको एक जैसा ही प्यार करती है। किसी कारण से नहीं लिखती है। कभी तुमको लिखा, कभी नहीं लिखा। कभी-कभी तो उनको नहीं लिखती हूं, जिनको मैं अत्यंत सोचती हूं, जो कभी बुरा ही नहीं मानेगें और बुरा मानने वाले लोगों की अब परवाह नहीं करनेवाली। मैंने बहुत परवाह कर लिया और उसके लाभ यही हुआ कि वो तो दुष्ट, दुष्ट ही रहें। वो ठीक नहीं हुए, हमारा ही नुकसान होता है। जिस पर भी मैंने सोचा कि इस आदमी से ठीक से रहती रहूं, चलो, कल ठीक हो जाएगा, परसों...। नहीं..., वो दुष्ट ही बने रहें। वो तो जरा भी ट्रांसफॉर्मेशन (Transformation) नहीं अपना किया। तकलीफ हमें होती रही, क्योंकि मैंने ये तय कर लिया है कि किसी भी मनुष्य का संहार नहीं होगा, कलजुग में। किसी भी मनुष्य को मैं कोई भी यातना नहीं दूंगी। उसको फुल फ्रीडम (Full Freedom) है, चाहे वो चाहे, तो वो हेल (Hell) में जाए, जहन्नुम में जाए और चाहे तो वो परमात्मा के पास जाए। पूर्ण फ्रीडम (Freedom) आपको मैंने दे रख्खी है। जिसको चाहे वो आप नर्क में उतरें, तो मैं कहूं, "तो अच्छा, भैया! अब दो कदम और जल्दी उतर जाओ।" इससे हमारा छुटकारा हो गया। वो भी व्यवस्था मैं कर लूंगी। गर आपको नर्क में जाना है तो भी व्यवस्था हो सकती है और आपको गर परमात्मा के चरणों में उतरना है तो वो भी व्यवस्था हो सकती है। इसलिए ऐसे लोग जो मुझे परेशान करते हैं और तंग करते हैं और मुझे बहुत जिन्होंने सताया है, ऐसे सब लोगों से मेरा कहना है कि मैंने बहुत पेशंटली (patiently) सबसे डील (Deal) किया और अब गर किसी ने मुझे सताया है और तकलीफ दी है, तो उनको मैं साफ कह दूंगी कि अब आपका हमारा संबंध नहीं है, आप यहां से चले जाइए। फिर वो-दो चार लात मारते ही हैं इधर-उधर, निकलते वख्त में, हरेक अपने गुण दिखाते रहते हैं। उनके सबके गुण दिखते हैं, लेकिन जो भी है, आपको ये चहिए कि आप अपना भला सोचें। वो गर नर्क की ओर जा रहे हैं तो आप उनकी गाड़ी में बैठने की कोई जरूरत नहीं। होगें, आपसे मिले सहजयोग में ही हैं और छोड़िए उनको।

अपना भला करें। किसी से भी वाद-विवाद करने की जरूरत नहीं। जो जैसा है, वैसा ही रहेगा। बहुत मुश्किल से बदलेगें वो लोग। क्योंकि वो दुष्ट हैं। जो अच्छे आदमी होते हैं वो गलती करते हैं, लेकिन बहुत जल्दी बदल जाते हैं। जो बुरे आदमी होते हैं, उनका बदलना असंभव सी बात है। ये मैं समझ गई हूं। मैंने बहुत कोशिशें की हैं। बहुत कुछ किया है। लेकिन, जो जैसा है, वैसा ही है। उसको आप बदल ही नहीं सकते। उसकी कभी अकल ही नहीं आने वाली। इसलिए ऐसे लोगों से भिड़ने की या बोलने की जरूरत नहीं है और इस वजह से मुझे आपसे एक विनती करना है कि आप लोग किसी भी प्रकार के ऐसे लोगों से कोई भी संबंध न रखें। धीरे-धीरे वो अपने आप छंट जायेगें, क्योंकि वो यहां पर इसलिए हैं कि आपकी जो भी साधना है, उसको नष्ट करें। ऐसे लोगों से बच के रहें, उनसे रक्षा करें। अपनी रक्षा उनसे करें। आपने सहजयोग में वाइब्रेशनस (Vibrations) पाएं।

एक साहब थे, अभी मकान वो हमें दे रहे थे। उनके पास मैं गई। उनको मैंने पार कर दिया। पार होने के बाद, उनके पास एक साहब गए, ऐसे भी, उन्होंने जाके बताया कि नहीं ये माताजी के ध्यान में तो सब बदमाश लोग हैं और ऐसा है, वैसा है। अब उनको मैंने पार कर दिया, वाइब्रेशनस (Vibrations) आ गए, उसको विश्वास करें। तो उन्होंने कहा कि माताजी, हम आपको घर नहीं दे सकते, क्योंकि हमको उसने आके बताया। तो मैंने कहा, "ठीक है। तुम उसको ही घर दो।" बेचारे की वो हम खरीद भी रहे थे, (और दूसरा) कोई खरीदने वाला नहीं। वो तो नुकसान हो गया। अब रोज फोन करता है, रोज फोन करता है। माताजी! खरीद लो। मेरी गलती ही गई। मैंने कहा, "भई देखो! अब तो तुम उसी को बेचो।" हो गया। पूरी फ्रीडम (Freedom) है। अब वो इसलिए रो रहा है कि माताजी मुझसे नाराज हो। मैं नाराज-वाराज नहीं। मैंने कहा, " तुम उसी को बेचो जिसने आके तुम्हें पढ़ाया था।" इसलिए ऐसे जो अकलमंद लोग हैं, उनके लिए बेहतर है कि अपने को गर नर्क में जाना, तो सीधे टिकट कटाके चले जाएं। आप मत...अब, मैं आपको टिकट नर्क का भी दे सकती हूं। सब मेरे ही हिसाब किताब है। जिसको भी ऐसी इच्छा हो, नर्क में जाने की, मुझसे टिकट ले लें। मैं देने के लिए तैयार हूं और जिसको परमात्मा के राज्य में आना है, उसका भी टिकट मैं दे सकती। टिकट बाबू तो हरेक जगह का टिकट दे ही सकता है। लेकिन टिकट बाबू ये जरूर बताएगा कि भई, एक तरफ से अगर तुम गए तो उधर डिरेलमेंट (Derailment) हो रहा है और वहां जाते ही साथ, तुम्हारी घड़ी जो है, टूट जाएगी। फिर 'There is no return from there.' वहां से आप आ नहीं सकते। रिटर्न टिकट (Return Ticket)... [अस्पष्ट]...ह...ह...ह...। तो इसलिए वो जरूर बता रही थीं कि जिसको नर्क के बारे में मुझे ज्यादा बताना नहीं। नर्क तो आप खुद ही जानते हैं, क्या चीज है? इसलिए मैंने आपसे-हिसाब किताब बताया है कि चीज़ अपनी साफ रखो और रस्ता अपना ऊपर का देखो। नजर नीचे नहीं, ऊपर नजर रख्खो, तो ऊपर चढ़ोगे। नीचे नहीं देखो, ऊपर चढ़ना है। ऊपर जाना है और हर कदम, हर जगह आपके साथ हम खड़े हैं। हर जगह। कहीं पर भी आप हों, कहीं पर भी रहो; हर जगह हम आपके साथ हैं। 'काया, मन-वाचा', पूर्णतया; ये हमारा PROMISE है। लेकिन, जिसको नर्क में जाना है, उसके साथ भी हैं, उसको खींच रहे हैं, नीचे की तरफ। ये भी है। इसलिए बच के रहो और ऊपर का रास्ता देखो, नीचे का नहीं।

अब मैं जा रही हूं, लंडन। आने के बाद, में देखूं कि हरेक आदमी कम-से-कम दस-दस लोगों को पार करे। आपमें से बहुत से ऐसे हैं। औरों को बुलाएं, उनसे खुले आम बातचीत करें, शर्माए नहीं। सहजयोग के बारे में बताएं कि ये बात कितनी सत्य है। इसमें कितना सत्य धर्म है। ये कितनी वास्तविक चीज है। और लोगों को इकट्ठा करें। जहां-जहां मिलें, उनसे बातचीत करें। फोटो सबलोग लें और दस-दस फोटो हरेक आदमी दस घर पहुंचाए। ये भी बड़ा अच्छा तरीका है कि हर आदमी काॅन्ट्रीब्यूट (Contribute) करके दस फोटो खरीदे और दस फोटो दस घर में पहुंचाए। ऐसे घर में, जहां पर कि श्रद्धा हो, फोटो के प्रति, जहां पूजा हो सके, जहां लोग सहजयोग को मान सकें। इस प्रकार से करने से ही सहजयोग फैल सकता है। अपन लोग बहुत ज्यादा पब्लिसिटी (Publicity) नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि जब भी पब्लिसिटी (Publicity) करती हूं, तो गंदे लोग आके जल्दी चिपक जाते हैं और जो अच्छे लोग होते हैं वो मिलते ही नहीं। इसलिए बेहतर ये है, इसी तरह से आपलोग सहजयोग की पूरी तरह से सेवा करें और उसके द्वारा अपने को संपत्तिशाली करें। परमात्मा आप सबको सुखी रखें। मेरा पूर्ण आशीर्वाद आपके साथ है। मेरा हृदय, मन, शरीर पूरी समय आप ही की सेवा में संलग्न है। मैं एक पल भी आपसे दूर नहीं। जब भी आप मुझे सिर्फ आंख बंद करके याद कर लें, उसी वक्त मैं पूर्ण शक्ति लेकर के “शंख, चक्र, गदा, पद्म, गरुड़ लेई सिधार”। एक क्षण भी विलंब नहीं लगेगा। लेकिन आपको मेरा होना पड़ेगा, ये जरूरी है। गर आप मेरे हैं तो एक क्षण भी मुझे नहीं लगेगा, मैं आपके पास आ जाऊंगी। सबको परमात्मा सुखी रख्खें और सुबुद्धी दें। सन्मति से रहो, सन्मति से रहो।

जय श्री माताजी

Mumbai (India)

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