Public Program 1985-03-31
31 मार्च 1985
Public Program
Dharamshala (भारत)
Talk Language: Hindi | Transcript (Hindi) - Draft
॥ जय श्री माता जी ।। धर्मशाला 31-03-85
धर्मशाला के मातृभक्तों को मेरा प्रणाम ! यहाँ के मन्दिर की कमेटी ने ये आयोजन किया, जिसके लिए मैं उनका बहुत धन्यावाद मानती हूँ। असल में इतना सत्कार और आनंद, दोनों के मिश्रण से हृदय में इतनी प्रेम की भावना उमड़ आयी है कि वो शब्दों में ढालना मुश्किल हो जाता है। कलियुग में कहा जाता है कि कोई भी माँ को नहीं मानता । ये कलयुग की पहचान है कि माँ को लोग भूल जाते हैं। लेकिन अब ऐसा कहना चाहिए कि कलियुग का समय बीत गया, जो लोगों ने माँ को स्वीकार किया है । माँ में और गुरू में एक बड़ा भारी अन्तर मैंने पाया है, कि माँ तो गुरू होती ही है, बच्चों को समझाती है, लेकिन उसमें प्यार घोल - घोल कर इस तरह से समझा देती है कि बच्चा उस प्यार के लिए हर चीज करने को तैयार हो जाता है । ये प्यार की शक्ति, जो सारे संसार को आज ताजगी दे रही है, जो सारे जीवन्त काम कर रही है, जैसे ये पेड़ का होना, उसकी हरियाली, उसके बाद एक पेड़ में से हो जाना और फूल में फूल से फल हो जाना, ये जितने भी कार्य हैं, जो जीवन्त कार्य हैं, ये कौन करता है? ये सब करने वाली जो शक्ति है वो परमात्मा की प्रेम की शक्ति है। उसी को हम आदि शक्ति कहते हैं। परमात्मा तो सिर्फ नज़ारा देखते हैं कि उनकी शक्ति का कार्य कैसे हो रहा है? जब उनको वो कार्य पसन्द नहीं आता तो वो आँख मूद लेते हैं और सारा नजारा भी खत्म हो जाता है। परवाह तो माँ को करनी पड़ती है कि मेरे बच्चे ठीक से रहें । संसार एक बड़ा सुन्दर आलीशान ऐसा विशेष रूप का आदर्श हो कि जिसे देखकर परमात्मा संतुष्ट हो जाएं, ये पूरा प्रयत्न होता रहता है। लेकिन आप जानते हैं कि हर बार ऐसे प्रयत्न हुए। अनेक अवतार इस संसार में आए और अनेक प्रयत्न हुए। लेकिन मुनष्य की अक्ल उल्टी बैठ जाती है । कोई बात उसे बताओ "नहीं करो', तो वो जरूर वही काम करता है अभी आपसे योगी जी ने कहा कि आप शराब मत पीना, अगर आप माँ के भक्त हो । लेकिन ऐसा कहने से और ज्यादा ही पीना शुरू कर देंगे । मैनें देखा है कि बच्चों से कोई चीज़ मना करो तो वे डबल (दोगुना) करते हैं, कि क्यों मना किया इसीलिए हम करेंगे, अंहकार की वजह से । इसका बेहतर तरीका मैंने सोचा कि इनके अन्दर ज्योत जला दो - चाहे वो टिमटिमाती क्यों न हो । थोड़ी - सी ही ज्योत जल जाएगी तो उस ज्योत के प्रकाश में खुद ही देखेंगे कि हमारे अन्दर क्या दोष है ? अगर समझ लीजिए आप हाथ में सॉँप पकड़े हैं और कोई कहे कि भई तुम तो रस्सी की जगह साँप पकड़े हो छोड़ दो । तो कहेंगे कि, "नहीं, मै तो इसका पकड़े ही रहूँगा।" वो मनुष्य की बुद्धि हुई ना ! लेकिन उस वक्त अगर कोई सामने ज्योत दिखा दे तो देखे कि साँप है तो उसको अपने आप ही छोड दे । इसलिए आज का हमारा जो सहयोग है, उसमें आपकी पहले कुण्डलिनी हम जगा देते हैं, चाहे आप कैसे भी हों, कुछ भी आपके तरीके हों, कोई भी आप गलत रास्ते पर हों, कुछ भी करते हों । उसके जगने के बाद फिर आप अपने ही आप ठीक हो जाते हैं। कुछ कहने की माँ को जरूरत नहीं पड़ती । क्योंकि आप खुद ही देखते हैं कि ये कैसी चीज है ?
अब शराब ही की बात देखिए कि विलायत में तो आप जानते हैं कि लोग हर रोज सुबह शाम शराब पीते रहते हैं। बहुत ही शराबी लोग हैं। और उनका जीवन भी बड़ा ही अधर्मी है । हम लोग उनसे बहुत ऊँचे किस्म के लोग हैं। हमारे अन्दर माँ-बहन है। हम बहुत धर्म समझते हैं। शराब आप अब पीने लग गये थोड़ी -बहुत, वो दूसरी बात है, बाकी हम लोगों में बहुत धर्म है । उन लोगों को, जब उनको जागृति हो जाती है, तो वो दूसरे ही दिन सब छोड़ - छाड़ के खड़े हो जाते हैं। कुछ मैं उनसे कहती नहीं । मैंने शुरू से ही ऐसा रवैया ही नहीं रखा कि कहो कि शराब मत पियो, जुआ मत खेलो, नहीं तो आधे लोग वैसे ही उठ के चले जाएं वहाँ - आधे से ज्यादा ही । यहाँ तो कम से कम ये हाल नहीं होगा। इसलिए मैं | कहती हैँ, कुछ नहीं, जैसे भी हो बैठे रहो । तुम्हें जागृति मुझे बस देने दो । जागृति देने से उनका अहंकार भी टूटता है और उनके अन्दर जो आदतें बैठी हुई हैं, वो भी टूट जाती हैं । अपने आप वो आदतें छूट जाने से वो समर्थ हो जाते हैं। असल में बहुत से लोग मन से तो सोचते हैं कि खराब काम है, लेकिन उसे छोड नहीं पाते। उसकी वजह ये है कि कोई आदत पड़ गयी, तो एक माँ की दृष्टि ये है कि जब बच्चे को आदत पड़ गयी तो उसको किस तरह से छुड़ानी चाहिए । उसको डांटने से, फटकारने से, मना करने से तो छुटेगी नहीं । तो किस तरह से ? एक माँ सोचती है कि चलो इसके अन्दर एक दीप क्यों न जला दें । इसके अन्दर अगर दीप जल गया तो उस दीप में से स्वयं ही देख लेगा कि. "जो मैं ये कार्य करता रहा हूँ ये मेरे लिए इतना हानिकारक है ।" और वो समर्थ हो जाय कि इस हानिकारक चीज को वो छोड़ दें, तो फिर कोई सवाल ही नहीं उठता । उसको कुछ कहने की जरूरत नहीं, उससे कोई झगड़ा मोल लेने की जरूरत नहीं । कहते ही साथ वो चीज़ अपने ही आप छूट जाती है । ऐसे ही चीज होना चाहिए। आज हम उस कगार पर पहुँच चुके हैं कि अगर हमें आत्म - बोध नहीं हुआ, हमने अगर अपने आत्मा को नहीं जाना, तो हमारा सबका सर्वनाश हो सकता है । ये बात बिल्कुल सही है, क्योंकि कलियुग अब पूरी चरम सीमा में पहुँच गया है। कुछ तो बीमारी से होगा। बहुत से लोग ऐसी विध्वसक चीजों से हो सकता है। न जाने कितनी चीजें हमने अपने को नष्ट करने की जोड ली हैं। - ऐसी बीमारियों में फंस जाएंगे कि उससे बच नहीं पाएगें । बहुत हम लोग सोचते हैं परदेस में लोगों के पास पैसा बहुत ज्यादा है, तो वो बड़े सुखी जीव होंगे । बिल्कुल भी सुखी नहीं हैं, आपसे बहुत दुखी जीव है। आपसे बहुत ज्यादा दुखी हैं । क्योंकि उनके यहाँ न कोई समाज है, ना कोई माँ है, ना कोई भाई है, न कोई बहन है । आप सोचिए कि आपके पास बहुत सारा धन दे दें और आपसे कहें कि आप अकेले कहीं लटके रहिए, तो आप क्या सुखी रहेंगे ? ऐसी उनकी हालत है । इतना पैसा होने पर भी वो सब लोग कोशिश ये करते हैं कि हम आत्महात्या कैसे करें?आपको आश्चर्य होगा । उनके बच्चे ये ही सोचते रहते हैं कि हम कैसे आत्महत्या करें?
तो ये बात जो समझते हैं कि पैसा होने से सब हो जाएगा, सो बात नहीं। लेकिन पैसा भी होना चाहिए । उसके लिए भी कुण्डलिनी का जागरण ठीक है, क्योंकि अपने अन्दर देवी, जो लक्ष्मी जी हैं, वो भी बसती हैं । जब हमारी कुण्डलिनी नाभि पर आ जाती है, जब हमारी लक्ष्मी की कुण्डलिनी खुल जाती है, तो हमारे अन्दर वो जागृति आ जाती है, जिससे लक्ष्मी जी का स्वरूप हमारे अन्दर प्रकट हो जाता है अब जिन्होंने सोच के लक्ष्मी जी बनायीं वो भी बहत सोच -समझ के बनायी हैं कि लक्ष्मी जी जो होती हैं, जो लक्ष्मीपति होता है, वो एक माँ स्वरूप होना चाहिए । आजकल तो जिसके पास पैसा आ जाता है वो तो राक्षक स्परूप हो जाता है। इसका मतलब पैसा पाना लक्ष्मीपति होना नहीं है। दूसरे उनके एक हाथ में दान है, एक हाथ में आश्रय है, एक हाथ से वो देती हैं और दूसरे हाथ से लोगों को आश्रय देना चाहिए। दूसरे जो दो हाथ हैं, उसके अन्दर कमल के गुलाबी फूल हैं । माने उनका रहन-सहन, उनकी शक्ल-सूरत ऐसी होनी चाहिए जैसे कि कमल का पुष्प हो और उनके अन्दर वैसी ही विचारधारा होनी चाहिए, वैसा ही स्वागत होना चाहिए जैसा कि एक कमल काटों वाले भौरे की अपने यहाँ सोने की व्यवस्था करता है । कोई भी मेहमान उसके घर में आए, उसमें कितने ही कांटे हों तो भी उसकी आवभगत करें उसको आराम दें, वहीं लक्ष्मीपति है । वो विचारी इतनी सीधी-सरल है कि एक कमल ही पर खड़ी है। उसको कोई और चीज की जरूरत नहीं । सारे तरफ कीचड फैला है उसी में एक कमल के ऊपर खड़ी हुई लक्ष्मी जी, जिनको हम इतना मानते हैं, ऐसी देवी हमारे अन्दर जागृत हो जाती है, और उसके ये सारे लक्षण हमारे अन्दर दिखायी देते हैं । श्रीकृष्ण ने साफ-साफ कहा था कि, 'जब योग होगा तब मैं तुम्हारा क्षेम करूंगा। पहले योग को साधो।" लोग बड़ा - बड़ा लेक्चर (भाषण) देंगे, जिससे किसी के समझ में भी नहीं आएगा, सब सोचेंगे पता नहीं क्या बक रहे हैं ? लेकिन सही बात ये है कि पहले योग को प्राप्त करें । जिसने योग को प्राप्त कर लिया वो समाधान में आ जाता है, उसके सारे प्रश्न अपने आप मिट जाते हैं। कुण्डलिनी शक्ति जो हमारे अन्दर है, ये हमारी शुद्ध इच्छा है। बाकी जितनी हमारे अन्दर इच्छाएं हैं, जैसे कोई आएगी कहेगी, "माँ, मेरा बेटा नहीं।" चलो भई तुम्हारे बेटा हो जाएगा । बेटा हो गया। उसके बाद कहेगी कि, "माँ, बेटा तो हो गया, अब मुझे नाती चाहिए।' वो भी हो गया| अब मुझे घर चाहिए' घर के बाद वो चाहिए, उसके बाद "वो चाहिए। 71 इसका कोई अन्त ही नहीं है । इसका मतलब, हमारे अन्दर जो इच्छाएं हैं, वो इच्छाएं शुद्ध नहीं है । शुद्ध इच्छा 'एकमात्र' है वो ये है कि हमें परमात्मा से एकाकार होने की एक, किसी तरह से, ये एक युक्ति जुट जाए । किसी तरह से ये काम बन जाए कि हम ये परमात्मा की जो चारों तरफ फैली हुई शक्ति है, जिससे सारा जीवन्त कार्य होता है. उससे हम एकाकार हो जाएं । यही हमारी शुद्ध इच्छा है और ये शुद्ध इच्छा की शक्ति ही कुण्डलिनी है, और जो आदिशक्ति जो कि परमात्मा की इच्छा है, उसी का ये प्रतिबिम्ब है। वही हमारे अन्दर छाया हुआ है। हमारे हृदय में जो आत्मा है, वो परमात्मा की छाया, और जो हमारी कुृण्डलिनी त्रिकोणकार अस्थि में है, वह परमात्मा की इच्छा की प्रतिबिम्ब है ।
उसकी जो इच्छा, जो आदिशक्ति है, उसकी छाया हैं, प्रतीक छाया है। इसको अगर आप समझ लें तो फिर आपकी समझ में आ जाएगा कि हम धर्म के नाम में कितने भटकाव में घूम रहे हेैं। वही आदिशक्ति जो है, वही हमारी माँ है । वो प्रदान करती है जो कोई भी माँ नहीं दे अलग माँ है। हमारे अन्दर बसी हुई है और ये माँ सबको हम सबकी अलग - सकती । क्योंकि ये आदिशक्ति जो है पावन मूर्ति परमात्मा की शक्ति है, जो हमारे अन्दर वो गुण दे देती है जो परमात्मा को प्रसन्न रखे और हमारे अन्दर वो समार्थ्य दे देती है, वो शक्ति दे देती है जो परमात्मा के सामर्थ्य लगते हैं। जैसे कि अब कोई कहता है कि, माँ मेरे ये प्रश्न है।" अच्छा, हमने कहा तुम घर जाओ, ठीक हो जाएगा। घर जाते ही देखता है कि प्रश्न तो ठीक हो गया। माँ ने क्या चमत्कार कर दिया। कुछ चमत्कार मैंने किया नहीं। कोई बात मैंने की नहीं। क्या हुआ ? कि आपकी कुण्डलिनी मैंने जागरण कर दी। कुण्डलिनी हो है वो किसी भी कारण और परिणाम से परे चीज़ है । कोई है, किसी से पूछा भई तुमको क्या परेशानी है ? हमारे पास पैसा नहीं इसलिए हम परेशान हैं । यही न ? कारण ये है कि पैसा नहीं है । और इसलिए आप परेशान हैं। लेकिन समझ लो आप कारण से परें ही चले जाएं, तो कारण भी खत्म हो गया और उसका परिणाम भी खत्म हो गया। यही चीज होती है जब हमें शारीरिक आधि-व्याधि रहती है । जब हमारे अन्दर शारीरिक आधि-व्याधि रहती है, तो हम सोचते हैं कि " इसलिए हमें जुकाम हो गया क्योंकि हम सर्दी में गये थे ।" अच्छा ! लेकिन ऐसी भी कोई दशा हागी कि जहां जुकाम ही नहीं होता । "हमें इसलिए कैंसर हो गया क्योंकि हमने ये गलत काम किया।" या "हमें इसलिए ये बीमारी हो गई क्योंकि हमने ये बदपरहेजी करी। लेकिन कोई ऐसा भी स्थान होगा जहां ये चीज होती ही नहीं । जहां आप गलती ही नहीं कर सकते, या जहां ये कारण ही नहीं बसते । इसको मेडिकल सांईस (चिकित्सा- शास्त्र ) में parasympathetic nervous system ( मध्य नाड़ी जाल ) कहते हैं। लेकिन डॉक्टर लोग इसको समझने के लिए पहले सहजयोग को समझ लें, तब उसको समझ पाएंगे । लेकिन आप लोग इसको बहुत आसानी से समझ सकते हैं। जिसे लोग चमत्कार कहते हैं कोई चमत्कार नहीं है । इसमें कोई चमत्कार नहीं है। हम तो रोज के चमत्कार नहीं समझते । बताइये कि एक फुल से फल बनता है तो हम क्या बना सकते हैं ? नहीं बना सकते । और ऐसे हज़ारों, करोड़ों हम बनते देखते हैं, हमको कोई भी चमत्कार नहीं लगता । एक पहाड़ी का बच्चा पहाड़ी होता है । एक देसी का बच्चा देसी होता है। शक्ल सूरत वैसी बनी रहती है, कौन बनाता है? ये सोचिए इसका चयन कौन करता है? ये किस तरह से बारीक से बारीक चीजें हजारों करोडों ऐसी चीजें संसार में हाती हैं । वो जो शक्ति ये कार्य करती है, जब वो हमारे अन्दर बहने लग जाए तो फिर क्या हम समर्थ हो जाएंगे, हम शक्तिवान हो जाएंगे, शक्तिशाली हो जाएंगे।
इन पहाडों में देवी का स्थान है। आप जानते हैं कि आज रामनवमी का श्भ अवसर है। इस शुभ अवसर पर ही आप से मिलना था । कोई तो भी ऐसी ही विशेष बात होगी, जहां पर कि मुझे यहां आज ही आना था । यहां सात देवियों का स्थान है। सात देवियां अनेक बार आई। उन्होंने आकार के युद्ध किये यहां । बहुत राक्षसों को मारा । बहुत दुष्टों को मारा । आज भी में देखती हूँ कि यहां बहुत से लोग तांत्रिक बनके और गुरू बनके और झूठ-मूठ करके घूम रहे हैं। उसके पीछे में आप लोग लग जाते हैं। वो लोग काली विद्या करते हैं। आप उस परेशानी में फंस जाते हैं। झूठ-मूठ के लोगों के पीछे में लग करके आपने काफी नाश कर लिया। आप डाक्टर लोगों के पास जाइये, तो कहेंगे कि आपको कोई बीमारी ही नही है । लगता ही नहीं कि आपको कोई बीमारी है । लेकिन कमजोर आप हुए चले जा रहे हैं । घरमें रोज कलह हो रहा है, झगड़ा हो रहा है। कुछ समझ नहीं आता है, बच्चों का मन पढने में नहीं लगता है, चंचलता आ गई। सारी परेशानी कहां से आई ? सब इन तांत्रिकों के पीछे लगने से । इन झूठे गुरूओं के पीछे लगने से । आपको पता होना चाहिए कि परमात्मा को पैसा - वैसा कुछ समझ में नहीं आता है । आप ये जमीन है, इस जमीन को आप कहें कि मैं तेरे को दो पैसा देती हूँ तो मेरा इतना काम कर दे । उसको समझ में आएगा। आप उसमें एक बीज डाल दीजिए, अपने आप उसमें वृक्ष आ जाएगा। अंकुर आ जाएगा। उसके लिए कोई आपको वो जमीन के लिए कुछ मेहनत नहीं करनी पडेगी । तो सिर्फ ये है कि उसकी अपनी शक्ति है। उस शक्ति में जब बीज पड़ गया, अपने आप पनप गया। लेकिन आप ये सोचते हैं कि ये करें, वो करें, इस करने से, उसे करने से भगवान खुश हो जाएंगे । ये बिल्कुल बात नहीं । सिर्फ आपका परमात्मा में पूर्ण विश्वास और भक्ति होनी चाहिए । और ये जानना चाहिए कि परमात्मा हैं । चाहे आप माने या न माने, परमात्मा ये चीज है जो इतने 'हजारों' तरह के कार्य संसार में करते हैं। वो परमात्मा जरूर हैं लेकिन उनको अभी तक आपने जाना नहीं। मां को देखे वगैर ही, जाने वगैर ही इतनी आपके अन्दर भक्ति है, तो क्या आपको मां मिलेगी नहीं ? ऐसे कैसे हो सकता है ? क्या मां के अन्दर हृदय नहीं है ? क्या मां नहीं सोचती कि मेरे बच्चे मुझे याद कर रहे हैं ?तो उनके पास जाना ही होगा । ऐसा तो कोई नहीं सोच सकता कि कोई मां को बुलावे और मां न आए । लेकिन दोष कभी-कभी ऐसा हो जाता है, समय समय का , कि मनुष्य गलत रास्ते पर चल जाता है। गलत रास्ते पर जाने पर वो कार्य नहीं बनता है । लेकिन जब समय आ जाता है तो जरूरी है कि जो आपने चाहा अपनी भक्तित में वो फलित होना ही है। और ये कार्य आप लोगों की कुण्डलिनी के जागरण के बाद जरूरी से करना है।
पहले तो बात ये है कि कोई भी तांत्रिक के पास जाने की जरूरत नहीं । यही आज का मर्दन है । आज के राक्षकों का मर्दन यही है कि सारे तांत्रिकों और सारे गुरूओं के पीछे में हाथ धोकर लगी हूँ । 1970 साल में मैने खुले आम बम्बई में इन सब राक्षकों के नाम बताए थे कि सबने जन्म लिया हुआ है। इनसे और सारे गुरूओं के रूप में घूम रहे हैं और है। बचकर रहे । एक-एक राक्षस चण्ड मुण्ड, सबने जन्म ले रखा हुआ उनके पीछे हजारों पागल हैं । जाने दीजिए, इन बेवकूफ लोगों को उनके पीछे जाने दीजिए । लेकिन जो अच्छे भले लोग हैं, जो सादे-सरल हृदय के लोग हैं, वो भी ऐसे चक्करों में फंस जाते हैं । और उनके घरों में कहल, उनके शरीर में क्लेश, आदि कितनी लकलीफें होती हैं । इसलिए इस चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए । कोई तांत्रिक आए, आपके यहां हाथ में डोरा बांधे, आप उसको कहना, "माफ करिए, मुझे डोरा नहीं बांधने का ।" बहुत से लोग काशी से गंडा ले जाते हैं, बांधो इसे । काशी का गंडा आप बांध रहे हैं । उसका आपने दो रूपया ले लिया । अब आपने बांध लिया, लेकिन आप क्या जानते हैं उसके अंदर कोई चीज बंधी हुई है जो आपको पकड लेगी। ये न तो डाक्टर पहचान सकता है, न कोई वैद्य पहचान सकता है न कोई वैद्य पहचान सकता है। ये तो वही पहचान सकता है कि जिसको आत्म बोध हो गया है। वो बता देगा आपको कि आपमें पकड़ आ गयी है। और इस तरह की चीजें यहां पर बहुत हैं, मैने आते ही कहा कि अभी रात भर तो मुझे लड़ना है सबके साथ यहां पर, रात भर युद्ध होगा तीन दिन से रात भर युद्ध हो रहा है। और यहां ऐसी बहुत सी गंदी, मैली विद्यायें करने वाले लोग छिपे बेठे हुए हैं और वो गांव में आकर के औरतों पर या आदमियों पर नजर डाल कर और उनसे रूपया समेट रहे हैं। कोई कहेगा मुझे सिर्फ चावल दे दीजिए, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मुझे ये चीज दे दीजिए, मुझे कुछ नहीं चाहिए । कभी भी आपने सुना है कि राम ने या कृष्ण ने किसी से भीख मांगी थी कि तुम मुझे चावल दे दों ? या गडे बांधे थे ? या ये से नाम ले लो भगवान का तो तुम्हारा सब ठीक हो जायेगा ? हमें नासमझी है, लेकिन कहा था कि तुम किसी नासमझी इतनी हद तक नहीं गुजरनी चाहिए कि हम भगवान में और शैतान में फर्क ही न कर सकें । हम ये भी न है हमारा म्दन काल । पहचान सके कि ये शैतान है, ये तो राक्षक है। ये तो हमारे लिए एक बड़ा भारी दुष्ट आया हुआ आया हुआ है, उसको न पहचाने और हम भगवान को न पहचाने । शक्ल-सूरत से आप पहचान सकते हैं कि ये राक्षसी आदमी है । उसके तौर तरीके से आप पहचान सकते हैं। क्योंकि आप इस वातावरण में रहते, आपके अंदर सवेदना है, आप समझ सकते हैं कि ये तो शैतान लगता है ये आदमी ठीक नहीं । उनके साथ बहू- बेटियाँ बैठेंगी, तो नुकसान पाएगी । उनके साथ आदमी बैठेंगे, तो नुकसान पाएंगे । कभी भी आपके घर में तरक्की नहीं आएगी । ये सबसे बड़ी चीज यहां पर है और इसीलिए देवियां यहां पर हमेशा जन्म लेती रहीं ।
लेकिन अब कलियुग में जो खराबी आ गयी वो ये है कि राक्षक ऐसे सामने खड़े हों तो उनकी गर्दनें काट के फिकवा दें । लेकिन वो तो ऐसे सामने खड़े नहीं हैं, सबके दिमाग में घुसे हुए हैं । सारे भक्तों के दिमाग में बच्चों के दिमाग में अगर राक्षक घुस जाएं तो मां का क्या होगा, ये सोच लो । आप ही सोचिए । क्या आप एक मां है या बाप हैं आप कितने परेशान हो जाएं ? और ये ही आज दशा में देखती हूँ लोगों की, कि सादे, भोले, अच्छे लोगों पर ये चीज बड़ी छाती है । ये शौक आप छोड़ दीजिए । किसी गुरूओं के पास जाना, तांत्रिक के पास जाना, मांत्रिक के पास जाना, ज्योतिषी के पास जाना, ये सब चीजों को आप छोड़ दीजिए । अगर इसको आप छोड़ दें, तो आप सीधे ही परमात्मा के साम्राज्य में जा सकते है। कोई परेशानी नहीं होगी। ये जो इस देश में रहने वाले लोग हैं, खासकर जो परदेश में रहने वाले लागे हैं, इनमें से कितने जाएंगे भगवान के दरबार में ?बहुत कम । इनको तो मां के दरबार में आने की हिम्मत ही नहीं होने वाली । उसके लायक ही नहीं हैं । उसके योग्य ही नहीं हैं । उनका कुछ भी नहीं भला होने वाला । मैं आपसे बता रहीं हूं,। हालांकि मैं परदेश में मेरे पति हैं, वहाँ रहती हूँ, इतने सालों से मेहनत कर रही हूं, सब बेकार । आप लोग मेरे अपने हैं । आप लोग मेरे जान के प्यारे हो । लेकिन आप लोग भी ऐसे गलत फहमी में फसे हुए, इधर -उधर भटक गये हैं, तो मां के लिए कितनी आर्तता और कितनी परेशानी की बात है। ये सोच लेना चाहिए कि मां ने कहा है कि किसी तांत्रिक, किसी गुरू, किसी घंटाल के पास जाने की जरूरत नहीं । हम लोग गृहस्थ के लोग हैं । गृहस्थी के लोगों को गृहस्थी से सम्बन्ध रखना चाहिए । हमारा साधु-सन्यासियों से कोई मतलब नहीं । हम लोग कमाएं, हम यज्ञ कर रहे हैं, हम गृहस्थी में बैठे हैं । क्या हमें चाहिए कि हमारा पैसा उठा के इन साधु सन्यासियों को दें? कोई जरूरत नहीं । एक बार सीता जी तक साधु-सन्यासी से फंस गयी थी और आप जानते हैं बेचारी को सारा रामायण उसके बाद रच गया । इसलिए इन चक्करों में बिल्कुल नहीं हुए आने का । आप खास कर औरतों पर इनका ज्यादा असर आता है क्योंकि और ज्यादा सीधी सादी होती हैं। अपने बच्चों को, अपने घर को, अपने पति को इससे बचा कर रखिए । हमारे यहां की समाज व्यवस्था अत्यन्त सुन्दर है । आप नहीं जानते बाह्य में क्या है । कोई मर जाए तो पूछने वाला नहीं । वहां किसी को पता ही नहीं चलता कि कोई मर गया । बाप मर गया तो भी बच्चों को नहीं पता चलता । बच्चे मर गये तो बाप को पता नहीं चलता । उस लंदन शहर में एक हफ्ते में तीन बच्चे, चार बच्चे मां बाप मार डालते हैं । क्यों मारते हैं ? क्योंकि मां बाप तंग आ गये। आप सोचिये कि कम से कम दो बच्चे तो मार ही डालते हैं। आपने कहीं सुना है किसी मां को, बाप को, आपने देश में, चाहे दस बच्चे हो जाएं, वो पकड़ के मारता है? इतनी जालिम उनकी आदत है, और हम लोग इतने सहज सरल प्रेम के लोग हैं। हमको इस चक्कर में बस नहीं फंसना चाहिए । बाकी आपको मैं जागृति आज दे दूँगी । आप लोग पर हो जाएं । हाथ में से चैतन्य की लहरियां शुरू हो जाएंगी । आपके नस-नस में ये चीज बहना चाहिए । ये नहीं कि कोई बता दे आप पार हो गए। आपके सर में से कुण्डलिनी का जो ब्रह्हरंध है, छिद करके वहां से ठंडी हवा आयेगी । यहां से ठंडी हवा आ जाएगी। आप देखेंगे कि आपके सर में से ठंडी हवा निकल रही है । हाथ में से ठंडी हवा आएगी । एक बार आत्म -बोध होने के बाद आपके
और आप गाते भी हैं ठंडी हवा आयी और चांदी के पत्ते हिलने लग गये और देवी आयी। आपने गाना भी गया । हमसे योगी महाजन पूछ रहे थे कि मां इनको कैसे पता कि ठंडी हवा आती है जब देवी आती है ? इनको कैसे पता चला ? ये तो, मैने कहा, कि आदि काल से चला आ रहा है । देवी तो यहां अनेक वर्षों से है । तो जिन लोगों ने गाया होगा, पहले बताया होगा कि जब देवी आती है तब उनसे ठंडी हवा आती है । तो आदि शंकरचार्य ने वर्णन किया है कि 'सलिलम -सलिलम' हाथ से ऐसी ठंडी - ठंडी हवा आनी चाहिए । ये देवी की पहचान है । जिसके बदन में ठंडी - ठंडी हवा आए वही अवतार है। ये देवी की पहचान है। ये इन्होंने कहा था। लेकिन हमारे गांव में जो परम्परा से चले आ रहे हैं, उन्होंने देखा है कि जब देवी का अवतरण होता है तो सब जगह ठंडी हवा आती है। उनके बदन से ठंडी हवा आती है इसलिए ये ऐसे-ऐसे गाने बने हुए हैं । ये पारम्परिक जो गाने बने हुए हैं, इसके अन्दर बड़ी खूबी से सारी बातें लिखी हुई है कि देवी क्या चीज है और देवी को कैसे पहचानना चाहिए। तो इस तरह से आप लोगों के पास तो बड़ी सम्पदा है, बड़ी आपके पास में सूझ - बूझ है, समझ है, और आप सीधे-साधे सरल स्वभाव के लोग हैं। जो कठिन स्वभाव के लोग हैं वो बडे मुश्किल होते हैं। आप लोगों को पार कराना कोई मुश्किल नहीं लेकिन एक ही वचन देना है कि ये गुरू घंटालों को आप छोड़ देंगी और इसके आगे पीछे नहीं जाएंगी । उससे बड़े नुकसान आपने उठाये हैं, और उठायेंगी । इसलिए पहले सबसे पहले आप लोग सब जागृत हो जाएं । दूसरा मैंने ये सुना कि यहां पर गाना गाते लोगों के बदन में शरीर हिलने लग जाता है । कहते हैं देवी आती है । ये गलत फहमी है बहुत बड़ी । देवी किसी के बदन में नहीं आ सकती । बहुत मुश्किल। देवी का काम करना आसान है ? देवी के अन्दर तो हजारों चक्र होते हैं । उन चक्रों को संभालना , उनको ठीक से उसका चलाना, उसमें से ठंडी-ठंडी लहरें बहाना, लोगों का भला करना और ऐसे इंसान का चरित्र भी तो उज्जवल होना चाहिए । हमारे बम्बई में जितनी नौकरानियां हैं, शराब पीती हैं, सब ढंग करती हैं, उनके बदन में आती हैं देवी । बताओ, ऐसे कोई देवी कोई पालग है किसी के अन्दर भी आने के लिए । देवी तो एक शुद्ध चित्त में ही आ सकती है। और फिर वो देवी आकर बताती भी क्या है कि तुम उसको मार डालो तो अच्छा होगा। घोड़े का नम्बर क्या है। फलाना क्या है। मटका खेलने का नम्बर क्या है। ऐसा कभी देवी बता सकती है ?देवी तो हमेशा ऊंची बात करेंगी, पारमात्मा की बात करेगी, अच्छी बात करेगी । ऐसी गंदी बातें तो नहीं करने वाली । ये जब आप देखते हैं तब भी आप ऐसी औरत के पैर पर आते हैं। ये तो भूत हैं। ये तो भूत हैं जो इन औरतों के अन्दर आ जाते हैं और वो बोलने लग जाती हैं और आप उनको मानने लग जाती हैं। ये जरूर है कि भूत को कुछ - कुछ बातें मालूम होती हैं, वो बता देता है। लेकिन उसमें क्या रखा है ? इन सब चीजों में क्या रखा हुआ है । अगर आज आप भूत के यहां गये, तो कल वो आपके पकड़ जाएगा। आपका खानदान खा जाएगा। ऐसी औरतों को दरवाजे में आने नहीं देना चाहिए । उनके घर खाना नहीं खाना चाहिए । बिल्कुल दूर रखना चाहिए, क्योंकि वो बाधित लोग हैं, उनसे गंदी बीमारियां होती हैं ।
जिस औरत के बदन में भूत आता है उसको चाहिए कि वो अपना treatment (इलाज) करा ले और ठीक हो जाए। अन्त में पागल होकर ही मरती हैं। ऐसी सब औरतें पागल हो जाती हैं, पागल खाने में जाकर मरती हैं। आप लोग सब जानती हैं जो आपके यहां के बूढ़े हैं, उनसे पूछ लीजिए ऐसा होता है या नहीं । तो इस तरह की औरतों के पास या आदमियों के पास जाने की जरूरत नही, जिनके बदन में भूत आते हैं। इनको कहते हैं देव आ गये । और ऐसे आदमी लोग भी बहुत होते हैं जिनके अन्दर में भूत आ जाते हैं और खुब नाचने लग जाते हैं अजीब - अजीब बातें करते हैं और मुंह से kerosene oil (मिट्टी का तेल) रखके ऐसे आग जलाते हैं, और नींबू लगाते हैं, पता नहीं क्या- क्या तमाशे करते हैं। और लोग उस तमाशे पर ही ये हो जाते हैं। तमाशा हो तो ठीक है, लेकिन ये तमाशा नहीं है । इसके पीछे में बड़ी जहरीली चीज है । ये सांप और नाग से भी । क्योंकि ये अगर आपको डस गये तो गये आप काम से । उससे आप बच नहीं सकते । इसलिये इन बदतर लोग हैं । लोगों से आप दूर रहिये। इतना ही ज्ञान आपके लिए काफी है । बाकी आप बिल्कुत ठीक हैं। आपमें और दोष नहीं और किसी दोष को मैं नहीं देखती हूँ । सिर्फ यही देखती हूं कि अज्ञान में, अंधकार में, आप गलत लोगों के पीछे में कभी कभी चले जाते हैं। जो जितना नाटक करता है उतना उससे रहिए । दूर परमात्मा कोई नाटक नहीं है । वो असलियत है । वास्तविकता है । कोई नाटक या झूठ से नहीं होता। अभी तक आपको अनुभव नहीं था, तो अनुभव हम आपको दे देते हैं। अनुभव शून्य होने की वजह से आप जानते नहीं कि कौन अच्छा है, बुरा है। अब अनुभव पाएंगे तो आप जानेंगे । अब कोई अगर आपसे पूछे कि भई तुम नैना देवी को मानते हो, तुम चिंतपूर्णी को मानते हो, क्यों? वो तो एक पत्थर मात्र है । उसको क्यों मानते हो ? क्या जवाब है आपके पास ।कोई जबाव नहीं कि क्यों मानते हो ? इनको शंकर जी को मानते हो ? शंकर जी के बारह ज्योतिलिंग है । क्यों ? बारह ही क्यों है ? क्या बात है? आपको पूछना चाहिए कि क्यो भई कैसे क्या ? कैसे जाना ? जो बड़े -बड़े फकीर हो गए, बड़े बड़े ऊंचे पहुंचे हुए, जो बड़े -बड़े मुनि ऋषिगण लोग अपने यहां हो गए, उनके अन्दर चैतन्य की लहरियां थीं । उन्होंने इस चैतन्य को महसूस किया और कहा कि ये तो पृथ्वी तत्त्व ने निकाली हुई चीज है । ये तो बाईबल में भी लिखा है, कि पृथ्वी तत्त्व में से निकलेगी चीज 'स्वयम्भू' । ये स्वयम्भू चीज निकली है। पर अब वो स्वयम्भू की कोई भी मूर्ति बनाए, फिर कोई भी गंदा आदमी और भी मूर्तियां बनाकर उसको बेचे, महगा करे, ये सब चीजें परमात्मा की नहीं होती। जो स्वयम्भ चीज है, जिसमें से चैतन्य बह रहा है, वो सिर्फ एक फकीर बता सकता है ।
इसका एक उदाहरण बताएं । एक बार हम, एक जगह है, जिसको कि राहरी कहते हैं, जहां पर कि हमारे बाप- दादे राज करते थे, वहां पर गए थे। वहां किसी ने बताया कि मां यहां एक बड़ी अजीब सी जगह है। यहां पर एक अंग्रेज था पचास साल पहले । तो वो यहां पर एक dam ( बांध) बना रहा था । जब बांध डाल रहा था तो उसने देखा कि एक जगह ऐसी है - करीबन सौ फुट की जगह ऐसी - कि वहां कुछ भी करिए, आप खोद ही नहीं सकते । और वहां आप कुछ बनाइये तो वो ढह जाता है । रात में ढह जाए और सवेरे जो है फिर वो लोग बनाए, फिर वो रात में ढह 'इसे तो होता क्या है कुछ समझ में नहीं आ रहा ?बड़ी चमत्कार की चीज है। तो एक फकीर ने आकर कहा, जाए। " उसने कहा, इसको कैसे मालूम ? उसने कहा, "जो भी है, मैं छोड़ दो , ये मां का स्थान है, इसको नहीं छूना तुम । कह रहा हूं कि इससे अलग हट जाओ ।" तो आप देखिए कि बांध ऐसा सीधा बनना चाहिए तो उस जगह बांध ऐसा बना हुआ है। तो मैं वहां गयी। मैंने कहा ये तो सारा सहस्रार है। उन्होंने कहा, कैसे ? मैंने कहा चलो, तुम लोग तो सब पार हो । देखो इसमें से ठंडक आ रही है । ऐसी ठंडी - ठंडी लहरें बदन पर आने लग गई। अब जितने त्योतिलिंग है, उसमें से ऐसी बात है। अब आप जाइये , जब आप कुण्डलिनी जागरण के बाद आप जाइये कहीं, बैष्णो देवी जाइये, और आप साक्षात् वैष्णों देवी है ? ' ' पूछिए, उनके अन्दर से ठंडी-ठंडी हवा पानी आनी शुरू हो जाएगी । जाकर देखिए । ,, तो असल है कि नकल है, ये पहचान आ जाती है। कोई आदमी अगर आपके सामने ऐसा-वैसा आ जाए तो आप फौरन जान लीजिएगा । उससे गरम-गरम हवा आएगी । नहीं आएगी तो हाथ में कभी कभी फोड़े भी आ जाते हैं, कुछ ऐसे दुष्ट आदमियों से जो दुष्ट होते हैं, वो फौरन आपको पता चल जाएंगे। आपको किसी से पूछना नहीं होगा, आप फौरन कहेंगे कि इस आदमी से मेरा कोई मतलब नहीं, जाइये । साफ कह देंगे। अब अन्दर बाहर जानने का एक ही तरीका है कि आपके अन्दर प्रकाश आ जाए, और प्रकाश इस तो कुण्डलिनी से आता है जो छ: चक्रों को छेदती है, जिसको 'षटचक्र- भेदन" कहते हैं । ये चक्र जब छिद जाते हैं, एक तरफ तो हमारी तन्दरुस्ती अच्छी हो जाती है, और दूसरे तरफ हमारा मन शान्त हो जाता है । और तीसरी तरफ हमें आत्मा की प्राप्ति हो जाती है। आत्मा जो है सच्चिदानन्द है। माने आप इस चेतन अवस्था में सत्य को जान सकते हैं। अभी तक तो आपको सत्य असत्य का फर्क ही नहीं मालूम । अब मैं भी सत्य हूं या असत्य हूं आप क्या जानिएगा ? जब तक आपके अन्दर चैतन्य की लहरियां नहीं आएगी तब तक आप क्या जानिएगा कि मैं क्या हूं ? उसी प्रकार आप इसको चित्त कहिए कि आपका चित्त जो है वो प्रकाशित हो जाता है । जैसे यहाँ बैठे-बैठे किसी के बारे में सोचें और एक दम यहां पर समझ लो जलन आ गयी, माने क्या? हमारे यहाँ लंदन में जब पहले एक साहब पार हुए तो वहां के लोग शक्की ज्यादा हैं, आप लोग जैसे भक्ति तो उनमें है नहीं, शक्की हैं. ज्यादातर शक्की लोग होते हैं ।
उनको समझता तो कुछ भी नहीं, देवी वगैरह | उनसे तो गणपति का 'ग' से शुरू करना पड़ता है । तो उनके यहां चमक आ गयी। तो कहने लगे, "मां यहां क्यों चमक आ रही है ? मैंने अपने पिता के लिए पूछा था सवाल।" मेैंने कहा ये आपके पिता के चक्र है और हो सकता है कि उनको बड़ा बुरा Bronchitis गले में शिकायत हो गयी, क्योंकि ये विशुदधि स्काटलैंड में फोन किया तो उनकी अम्मा ने यही कहा कि तुम्हारे चक्र है। तो कहा, "अच्छा में अभी फोन करता हूं । बाप को बहुत बुरा Bronchitis हो गया है और बीमार पड़े हैं। उसने कहा कि अच्छा । तो अब कहने लगे, "मां इसका निदान क्या है ? और अब इसको कैसे ठीक किया जाए ।" तो निदान तो हो गया, मैंने कहा। अब इसको ठीक करने का तरीका हम तुमको बताते हैं कि तुम इसको किस तरह से कवच दो । जैसे ही उन्होंने कवच दिया आधे घंटे में उनकी अम्मा हैं । वो तो बाहर चले गए । इस का फोन आया कि पता नहीं क्या हआ तुम्हारे बाप तो बुखार उतर गया है और दौड़ रहे प्रकार ये चीज़ घटित होती है । तो जो चित्त है वो आलोकित हो जाता है। चित्त में प्रकाश आ जाता है । आप जिसके भी बारे में सोचेंगे, जो भी करना चाहेंगे उसके बारे में आप यहां बैठे -बैठे जानेंगे। अब देखिए आपने सुना होगा कि रेडियो होता है, टेलीविजन होता है, कहां पर प्रोग्राम होता है, यहां सुनाई देता है। उसी प्रकार परमात्मा की 'अनन्त' ऐसी किरणें हैं ऐसा उनका जाल फैला हुआ है, 'हजारों उनके हाथ हैं, उसी से कार्य होता है। पर पहले उनके राज्य में तो उतरिए । उनके साम्राज्य में तो आइये । अगर आप उनके राज्य में नहीं बैठे हैं, आप तो दूसरों के राज्य में बैठे हैं तो वो ही आपकी परवाह करें। जब आप परमात्मा सारे उनके देवदूत, गण आदि सारे आपकी सेवा में खड़े हुए हैं के राज्य में आएंगे तब आपका पूरा इन्तजाम है वहां। सबके सब वहां पर पुरी तरह से आपकी व्यवस्था करेंगे । और हर आपके प्रश्न जो हैं उसके वो इस तरह से आपको हल मिलेंगे कि आप हैरान हो जाइएगा कि ये कैसे हो गया। ये मां हमें कैसे प्राप्त हुआ। अनेक ऐसे उदाहरण हैं, अनेक ऐसे उदाहरण सहजयोग में देखे गये कि जिसका उत्तर कोई भी नहीं दे पाया । बहुत बार कहीं हम बैठे हुए हैं। आकाश से एकदम देखते हैं कि प्रकाश की ज्योत आ रही है। वो कैमरे में पकड आ जाता है। । एक बार हम बैडफर्ड में थे । ये तो वहां के पेपरों ने भी छापा कि बैडफर्ड में हम गए थे । हम तो कहीं कहीं कुछ, कुछ लेक्चर दे रहे थे , काफी लोग थे । उस वक्त कोई नौ बजे के करीब, या आठ बजे के करीब कोई लड़का ऊपर से नीचे गिर पड़ा। अस्सी फुट नीचे गिरा । उसके पास मोटर साईकल थी । पुलिया पर से जब गिरा तो लोगों ने, पुलिया पर के लोगों ने एम्बुलेन्स मंगवाई । जब तक एम्बुलेन्स आयी, लड़का चढ़ के ऊपर चला आया । लोगों ने पूछा भई तुम ऊपर कैसे चढ़ आए ? तो उन्होंने कहा वो, पता नहीं मुझे, एक आयीं थी । उन्होंने मुझे ठीक कर दिया।
तो उन्होंने सोचा ये पागल हो गया है कि क्या ? तो उसको अस्पताल ले गये वहां पुलिस आयी। उनसे पुलिस से बताया, मेरी बात मानिए, एक स्त्री थी, वो एक सफेद मोटर में आयी । (हमारी सफेद मोटर है) । और सफेद साड़ी पहनी हुई थी । और एक हिन्दुस्तानी स्त्री थी । उसने आकर के और मुझे हाथ फेरा । इससे मैं ठीक हो गया । तो उन्होंने कहा कि भई ऐसे तो कोई आया नहीं, हम तो पुलिया पर खड़े देख रहे थे, और ये तो ऊपर चढ़ा आया । कहा कि नहीं, हुआ तो सही । ये तो बात है क्योंकि इसके तो कोई चोट वोट है नहीं । दूसरे दिन उन्होंने हमारा फोटो देखा , तो बताया यही तो वो स्त्री थी जिसने हमें बचाया। तो पूछा कि तुमने किया क्या ?कहने लगे बस जिस वक्त में गिरने लगा, तो मैंने यही कहा कि, "हे पावन मां, Divine Mother मुझे तुम बचाओ । बस इतना मैंने कहा । मैंने उसको याद किया सिर्फ। और कुछ नहीं। और जैसे मैं गिरा उसके बाद पता नहीं कैसे, ये एकदम आ गयीं, इन्होंने ऐसे हाथ किया। मैंने गाड़ी को आते देखा ये उन्होंने साफ कहा, तो वो और उससे उतरते देखा और झट से नीचे आयीं और आकर के मुझे ठीक भी कर दिया। लोग परेशान हो गए । उन्होंने चिट्ठियां लिखीं । उन्होंने कहा कि ये कैसे क्या हो गया ? तो उन्होंने कहा कि ऐसे तो बहुत किस्से India (भारत) में हुए हैं लेकिन अब इंग्लैण्ड में भी हो रहे हैं । अच्छी बात है । इसमें कोई विशेष बात नहीं है । क्योंकि जब, जिसके हजारों हाथ हैं, जिसकी हजारों शक्तियां हैं, उसके लिए क्या विशेष बात है अगर हम कुछ हैं भी तो उसमें कौन सी विशेष बात है । अगर सूर्य है , तो है, उसमें कौन सी उसकी बात है । क्योंकि उसके अन्दर ये शक्ति हैं ही । जो है सो है । उसमें कौन सी विशेष बात है । लेकिन आपकी विशेष बात है कि आप इंसान से बढ़कर आज परमात्मा के दरवाजे आए हैं। और ये ही नहीं आज आप इंसान से भी ऊँचे उठ करके अति मानव होने वाले हैं । एक आत्म बोध पाने वाले इंसान होने वाले हैं । ये आपकी विशेषता है । ये आपका बड़प्पन है। इसीलिए मैंने कहा था कि आप सबको मेरा प्रणाम | इसीलिए मैंने सबसे पहले आप सबको प्रणाम किया था अब हम लोग थोड़ी देर में कुण्डलिनी जागरण का प्रयोग करेंगे । CS४ 058